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शनिवार, 23 अप्रैल 2016

''शब्द-शिखर'' पर ब्लॉगिंग का सफरनामा : पाँच शतक का आँकड़ा पार

हिंदी ब्लॉगिंग ने अपना एक लम्बा सफर तय किया है। कभी दो-चार पंक्तियों से आरम्भ हुए हिंदी ब्लॉग ने वक़्त के साथ रफ़्तार पकड़ी और आम जन के साथ तमाम नामी-गिरामी लोगों के लिए अपनी बात कहने का माध्यम बन गया हिंदी ब्लॉग। यह संयोग ही हैं कि अभी 21 अप्रैल, 2016 को हिंदी ब्लॉग ने 13 साल पूरे किये हैं और ठीक उसके एक दिन बाद 22 अप्रैल, 2016 को हमने अपने ब्लॉग शब्द-शिखर पर प्रकाशित पोस्टों का पाँच शतक पूरा किया है अर्थात शब्द-शिखर पर पाँच सौ पोस्ट प्रकाशित हो चुकी हैं।  

20  नवंबर, 2008 को आरम्भ हुआ शब्द-शिखर ब्लॉग भी लगभग साढ़े सात साल का सफर तय कर चुका है।आज शब्द-शिखर ब्लॉग पर 500 पोस्ट प्रकाशित हैं, जिन पर 6,700 से ज्यादा प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई हैं। कुल पृष्ठ दृश्य 2 लाख से भी ज्यादा हैं। दुनिया के लगभग 100 से ज्यादा देशों से किसी न किसी रूप में लोगों ने शब्द-शिखर ब्लॉग को देखा-पढ़ा या विजिट किया है। शब्द-शिखर को  363 लोग फॉलो करते हैं और इसे और भी समृद्ध बनाते हैं।  इसमें कोई शक नहीं कि इस ब्लॉग ने हमें बहुत सम्मान दिया। उस दौर में जबकि फेसबुक के पदार्पण के बाद हर कोई हिंदी ब्लॉग को बीते हुए दौर की बात मानकर, इसका मोह छोड़ रहा था, उस दौर में भी हम इससे अपना मोह नहीं छुड़ा पाये। बीच में एक दौर ऐसा भी आया कि कुछेक पोस्टों पर प्रतिक्रियाएं लगभग शून्य ही थीं और ब्लॉग की पठनीयता भी घट रही थी। पर ज्यादा दिन नहीं बीता, और धीरे-धीरे सब कुछ सहज हो गया।



"शब्द-शिखर" ब्लॉग की तमाम पोस्टों को जहाँ दैनिक जागरण, जनसत्ता, अमर उजाला,राष्ट्रीय सहारा, राजस्थान पत्रिका, आज समाज, गजरौला टाईम्स, जन सन्देश, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, दस्तक, आई-नेक्स्ट, IANS द्वारा जारी फीचर में स्थान दिया गया, वहीं इस ब्लॉग से तमाम रचनाएँ लेकर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं ने प्रकाशित भी कीं। 

अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, लखनऊ (27 अगस्त, 2012) में हिंदी ब्लॉग के एक दशक पूरा होने पर परिकल्पना समूह द्वारा जहाँ ’दशक के श्रेष्ठ ब्लागर दम्पत्ति' के रूप में हमें (कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव) सम्मानित किया गया, वहीँ अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, काठमांडू, नेपाल (13-14 सितंबर 2013) में  ”परिकल्पना ब्लॉग विभूषण सम्मान” और श्री लंका में आयोजित पंचम अंतर्राष्ट्रीय ‪ब्लॉगर‬ सम्मेलन (23-27 मई 2015) में "परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान" से सम्मानित किया गया।  

‘न्यू मीडिया एवं ब्लागिंग’ में उत्कृष्टता के लिए  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने 1 नवम्बर, 2012 को हमें ( आकांक्षा यादव-कृष्ण कुमार यादव) अवध सम्मान से विभूषित किया। जी न्यूज़ द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम का आयोजन ताज होटल, लखनऊ में किया गया था, जिसमें विभिन्न विधाओं में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित किया गया, पर यह पहली बार हुआ जब किसी दम्पति को युगल रूप में यह प्रतिष्ठित सम्मान दिया गया। 


ब्लॉगिंग के चलते ही हमें हिंदुस्तान टाइम्स वुमेन अवार्ड के लिए भी नामांकित किया गया, जहाँ फिल्म अभिनेत्री शबाना आज़मी, संगीतकार वाजिद खान, सांसद डिम्पल यादव ने सम्मानित किया। 



इसी क्रम में डॉयचे वेले की बॉब्स - बेस्ट ऑफ ऑनलाईन एक्टिविज्म प्रतियोगिता-2015  में इंटरनेट यूजरों ने  'पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड' श्रेणी में  'शब्द-शिखर' (www.shabdshikhar.blogspot.in/) ब्लॉग  को हिंदी के सबसे लोकप्रिय ब्लॉग के रूप में चुना। हिंदी सहित 14 भाषाओं में पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड के तहत एक-एक सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग चुना गया, जिसमे कुल मिला कर करीब 30,000 वोट डाले गए। ज्यूरी ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि, ''आकांक्षा यादव साहित्य, लेखन और ब्लॉगिंग के क्षेत्र में सक्रिय हैं।  उन्हें हिन्दी में ब्लॉग लिखने वाली शुरुआती महिलाओं में गिना जाता है।  आकांक्षा महिला अधिकारों पर लिखना पसंद करती हैं।  अपने ब्लॉग में वह अपने निजी अनुभव और कविताएं भी शामिल करती हैं।''  विजेताओं को 23 जून को जर्मनी के बॉन शहर में होने वाले ग्लोबल मीडिया फोरम के दौरान पुरस्कृत किया गया।  

निश्चितत:, यह आप सभी का स्नेह ही है जो कि "'शब्द-शिखर" ब्लॉग को जीवंत और समृद्ध बनाए हुए है। आज हम उन सभी लोगों को धन्यवाद देते हैं जिन्होंने हिंदी ब्लागिंग में शब्द-शिखर को इस मुकाम तक पहुँचाया !! 

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आज के दिन 20 नवंबर, 2008  को लिखी अपनी पहली पोस्ट 'ब्लागिंग' और 'एस.एम.एस.'  को पुन: प्रकाशित कर रही हूँ, जहाँ से हमने ब्लॉगिंग का शुभारम्भ किया था -

ब्लॉगिंग आज के दौर की विधा है. पत्र-पत्रिकाओं से परे ब्लॉग-जगत का अपना भरा-पूरा संसार है, रचनाधर्मिता है, पाठक-वर्ग है. कई बार बहुत कुछ ऐसा होता है, जो हम चाहकर भी पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से नहीं कह पाते, ब्लॉगिंग  उन्हें स्पेस देता है. कहते हैं ब्लॉगिंग एक निजी डायरी की भांति है, एक ऐसी डायरी जहाँ आप अपनी भावनाएं सबके समक्ष रखते हैं, उस पर तत्काल प्रतिक्रियाएँ प्राप्त करते हैं और फिर संवाद का दायरा बढ़ता जाता है. संवाद से साहित्य और सरोकारों में वृद्धि होती है. जरूरी नहीं कि हम जो कहें, वही सच हो पर कहना भी तो जरूरी है. यही तो लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया है. ब्लॉगिंग  भी उस लोकतंत्र की दिशा में एक कदम है, जहाँ हम अपने भाव बिना किसी सेंसर के, बिना किसी एडिटिंग के, बिना किसी भय के व्यक्त कर सकते हैं...पर साथ ही साथ यह भी जरूरी है कि इसका सकारात्मक इस्तेमाल हो. हर तकनीक के दो पहलू होते हैं- अच्छा और बुरा. जरुरत अच्छाई की हैं, अन्यथा अच्छी से अच्छी तकनीक भी गलत हाथों में पड़कर विध्वंसात्मक रूप धारण कर लेती है.

इसी क्रम में मैं आज ब्लॉगिंग  में कदम रख रही हूँ. मेरी कोशिश होगी कि एक रचनाधर्मी के रूप में रचनाओं को जीवंतता के साथ सामाजिक संस्कार देने का प्रयास करूँ. यहाँ बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें, यही मेरी लेखनी और ब्लॉगधर्मिता की शक्ति होगी.

 मैंने अपने ब्लॉग का नाम 'शब्द-शिखर' रखा है, क्योंकि शब्दों में बड़ी ताकत है. ये शब्द ही हमें शिखर पर भी ले जाते हैं. शब्दों का सुन्दर चयन और उनका सुन्दर प्रयोग ही किसी रचना को महान बनता है. मेर इस ब्लॉग पर होंगीं साहित्यिक रचनाएँ, मेरे दिल की बात-जज्बात, सरोकार, वे रचनाएँ भी मैं यहाँ साभार प्रकाशित करना चाहूँगीं, जो मुझे अच्छी लगती हैं.

-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

एक पत्नी का रोजनामचा

बेवक़ूफ़
वो
रोज़ाना की तरह
आज फिर ईश्वर का नाम लेकर उठी.
किचिन में आई
और चूल्हे पर चाय का पानी चढ़ाया.
फिर
बच्चों को जगाया
ताकि वो स्कूल के लिए तैयार हो सकें.
फिर
उसने किचिन में
जाकर चाय निकाली
अपने सास ससुर को देकर आयी,
फिर
उसने बच्चों का
नाश्ता तैयार किया
और बीच-बीच में बच्चों को ड्रेस पहनाई,
और
फिर बच्चों को
नाश्ता कराकर उनके
स्कूल का लंच तैयार करने लगी.
इस बीच
बच्चों के स्कूल का
रिक्शा आ गया..
वो
बच्चों को
रिक्शा तक छोड़ कर आई.
वापस आकर
मेज़ से बर्तन इकठ्ठा किये.
इसी बीच
पतिदेव की आवाज़ आई कि मेरे कपङे निकाल दो.

उनको
ऑफिस जाने लिए
कपड़े निकाल कर दिए,
और
वापस आकर
फिर पति के लिए
नाश्ता तैयार करने लगी.
अभी
पति के लिए
उनकी पसन्द का
नाश्ता अण्डा और पराठे तैयार करके टेबिल पर लगाया ही था,
कि
छोटी ननद आई
और ये कहकर कि भाभी मुझे आज कॉलेज जल्दी जाना है,
नाश्ता उठा कर ले गयी.
वो
फिर एक
हल्की सी मुस्कराहट के साथ वापस किचिन में आई.
इतने में
देवर की आवाज़ आई
भाभी नाश्ते तैयार हो गया क्या..?
"जी भाई अभी लायी..!"
ये कहकर
उसने फिर से
अपने पति और देवर के लिए अॉमलेट और पराठे तैयार करने शुरू किये.
"लीजिये नाश्ता तैयार है..!"
पति और देवर ने
नाश्ता किया और अखबार पढ़कर अपने-अपने ऑफिस के लिए निकल चले.
उसने
मेज़ पर से
खाली बर्तन समेटे
और सास-ससुर के लिए
उनका परहेज़ का नाश्ता तैयार करने लगी..
दोनों को
नाश्ता कराने के बाद
फिर बर्तन इकट्ठे किये
और उनको भी किचिन में लाकर धोने लगी..
इसबीच
सफाई वाली भी आ गयी.
उसने
बर्तन का काम
सफाई वाली को सौंप कर खुद बेड की चादरें वगैरह इकट्ठा करने पहुँच गयी.
और फिर
सफाई वाली के साथ
मिलकर सफाई में जुट गयी.
अब तक 11 बज चुके थे.
अभी
वो पूरी तरह
काम समेट भी ना पायी थी कि कॉलबेल बजी.

दरवाज़ा खोला
तो सामने बड़ी ननद
और उसके पति व बच्चे सामने खड़े थे.
उसने
ख़ुशी-ख़ुशी
सभी को आदर के साथ घर में बुलाया,
और
उनसे बातों में
उनके आने की ख़ुशी का इज़हार करती रही.
ननद की
फ़रमाइश के मुताबिक़
नाश्ता तैयार करने के बाद
अभी वो ननद के पास बैठी ही थी...
कि
सास की आवाज़ आई
"बहू खाने का क्या प्रोग्राम है..?"
उसने घडी पर
नज़र डाली तो 12 बज रहे थे.

उसकी
फ़िक्र बढ़ गयी
वो जल्दी से फ्रिज़ की तरफ लपकी
और
सब्ज़ी निकाली
फिर से दोपहर के
खाने की तैयारी में जुट गयी.
खाना
बनाते-बनाते
अब दोपहर का एक बज चुका था.
बच्चे
स्कूल से आने वाले थे.
लो बच्चे आ गये...
उसने
जल्दी-जल्दी
बच्चों की ड्रेस उतारी
और उनका मुँह-हाथ धुलवाकर उनको खाना खिलाया.
इसी बीच
छोटी ननद भी
कॉलेज से आ गयी
और देवर भी आ चुके थे.
उसने
सभी के लिए
मेज़ पर खाना लगाया
और खुद रोटी बनाने में लग गयी.
खाना खाकर
सब लोग फ्री हुए
तो उसने मेज़ से फिर
बर्तन जमा करने शुरू कर दिये.
इस वक़्त तीन बज रहे थे.
अब
उसको
खुद को भी
भूख का एहसास होने लगा था.
उसने
हॉट-पॉट देखा
तो उसमे कोई रोटी नहीं बची थी.
उसने
फिर से
किचिन की ओर रुख किया .
तभी
पतिदेव घर में
दाखिल होते हुये बोले कि
आज
देर हो गयी
भूख बहुत लगी है
जल्दी से खाना लगा दो.
उसने
जल्दी-जल्दी
पति के लिए खाना बनाया
और
मेज़ पर
खाना लगा कर
पति को किचिन से गर्मागर्म रोटियाँ बनाकर
ला-ला कर देने लगी.
अब तक चार बज चुके थे..
अभी वो
खाना खिला ही रही थी
कि पतिदेव ने कहा कि आ जाओ तुम भी खालो.
उसने
हैरत से
पति की तरफ देखा
तो उसे ख्याल आया कि
आज मैंने सुबह से कुछ खाया ही नहीं.
इस ख्याल के
आते ही वो पति के
साथ खाना खाने बैठ गयी.
अभी
पहला निवाला
उसने मुँह में डाला ही था की आँख से आँसू निकल आये.
पतिदेव ने
उसके आँसू देखे
तो फ़ौरन पूछा कि
तुम क्यों रो रही हो...?
वो खामोश रही
और सोचने लगी कि
इन्हें
कैसे बताऊँ कि
ससुराल में कितनी मेहनत के बाद ये रोटी का निवाला नसीब होता है
और लोग
इसे मुफ़्त की रोटी कहते हैं.
पति के
बार बार पूछने पर
उसने सिर्फ इतना कहा
कि
कुछ नहीं
बस ऐसे ही आँसू आ गये.
पति
मुस्कुराये और बोले
तुम
औरतें भी
बड़ी "बेवक़ूफ़" होती हो.
बिना वजह
रोना शुरू करदेती हो.
........... 
क्या वो 
वाकई बेवक़ूफ़ होती हैं..?

ज़रा सोचिये..
उन्हें 
ज्यादा कुछ नहीं
सहानुभूति और स्नेह 
के बस दो मीठे बोल चाहिये.

अपनी पत्नी को सम्मान दीजिए.... 

(यह सन्देश रूपी रचना वाट्सएप पर मिली।  किसने लिखा, इसका जिक्र नहीं ... पर जिसने भी लिखा दिल्लगी से लिखा.....साधुवाद ।  अच्छा लगा, अत: आप सभी के साथ शेयर कर रही हूँ)

- आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav @ http://shabdshikhar.blogspot.in/

गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

हिंदी ब्लागिंग की 13वीं वर्षगाँठ : हिन्दी ब्लॉगिंग में एक परिवार के तीन सदस्यों ने बनाया कीर्तिमान

आज हिंदी ब्लागिंग की 13 वीं वर्षगाँठ है। यद्यपि वर्ष 1999 में आरम्भ हुआ ब्लॉग वर्ष 2016 में 17 साल का सफर पूरा कर चुका है। वर्ष 2003 में यूनीकोड हिंदी में आया और तद्नुसार हिन्दी ब्लॉग का भी आरम्भ हुआ। यद्यपि इससे पूर्व विनय जैन ने 19 अक्टूबर 2002 को अंग्रेजी ब्लॉग पर हिन्दी की कड़ी सर्वप्रथम आरंभ कर इसका आगाज किया था, पर पूर्णतया हिन्दी में ब्लॉगिंग आरंभ करने का श्रेय आलोक को जाता है, जिन्होंने 21 अप्रैल 2003 को हिंदी के प्रथम ब्लॉग ’नौ दो ग्यारह’ से इसका आगाज किया। यहाँ तक कि ‘ब्लॉग‘ के लिए ‘चिट्ठा‘ शब्द भी उन्हीं का दिया हुआ है। आज उन सभी लोगों को याद करते हैं और उन्हें धन्यवाद देते हैं, जिन्होंने हिंदी ब्लागिंग को इस मुकाम तक पहुँचाया !! 

हैप्पी बर्थ-डे टू हिन्दी ब्लॉगिंग......इस अवसर पर उत्तर प्रदेश और राजस्थान के विभिन्न अख़बारों में प्रकाशित खबरों को भी आप सभी के साथ शेयर कर रही हूँ। 

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न्यू मीडिया के इस दौर में ब्लाॅगिंग लोगों के लिए अपनी बात कहने का सशक्त माध्यम बन चुका है। राजनीति की दुनिया से लेकर फिल्म जगत, साहित्य से लेकर कला और संस्कृति से जुड़े तमाम नाम ब्लॉगिंग से जुडे हुए हैं।  आज ब्लाॅग सिर्फ जानकारी देने का माध्यम नहीं बल्कि संवाद, प्रतिसंवाद, सूचना विचार और अभिव्यक्ति का भी सशक्त ग्लोबल मंच है।

यदयपि ब्लागिंग का आरंभ  1999 से माना  जाता है पर हिंदी में ब्लागिंग का आरम्भ वर्ष 2003 में हुआ। आज हिंदी में करीब एक लाख से ज्यादा ब्लॉग हैं और विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोग बखूबी इसके माध्यम से सक्रिय हैं। इनमें एक परिवार ऐसा भी है, जिसके सभी सदस्य हिंदी ब्लॉगिंग से जुड़े हुए हैं।  चर्चित हिंदी ब्लॉगर एवं सम्प्रति राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर के  निदेशक  डाक सेवाएँ कृष्ण कुमार यादव बताते हैं कि पूर्णतया हिन्दी में ब्लाॅगिंग आरंभ करने का श्रेय आलोक को जाता है, जिन्होंने 21 अप्रैल 2003 को हिंदी के प्रथम ब्लॉग ’नौ दो ग्यारह’ से इसका आगाज किया। सार्क देशों के सर्वोच्च 'परिकल्पना ब्लॉगिंग सार्क शिखर सम्मान' से सम्मानित एवं नेपाल, भूटान और श्रीलंका सहित तमाम देशों में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर्स सम्मेलन में सक्रिय भागीदारी निभाने वाले श्री यादव जहाँ अपने साहित्यिक रचनाधर्मिता हेतु "शब्द-सृजन की ओर" (http://kkyadav.blogspot.in/) ब्लॉग लिखते हैं, वहीं डाक विभाग को लेकर "डाकिया डाक लाया" (http://dakbabu.blogspot.in/) नामक उनका ब्लॉग भी चर्चित है। श्री यादव का पूरा परिवार ही हिंदी ब्लॉगिंग से जुड़ा हुआ है।

वर्ष 2015 में हिन्दी का सबसे लोकप्रिय ब्लाॅग 'शब्द-शिखर' (http://shabdshikhar.blogspot.com) को चुना गया और इसकी मॉडरेटर आकांक्षा यादव को  हिन्दी में ब्लाॅग लिखने वाली शुरूआती महिलाओं में गिना जाता है। ब्लॉगर दम्पति कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव को  'दशक के श्रेष्ठ ब्लॉगर दम्पति',  'परिकल्पना ब्लॉगिंग सार्क शिखर सम्मान' के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा नवम्बर, 2012 में ”न्यू मीडिया एवं ब्लाॅगिंग” में उत्कृष्टता के लिए ”अवध सम्मान से भी विभूषित किया जा  चुका  है। इस दंपती ने वर्ष 2008 में ब्लाॅग जगत में कदम रखा और  विभिन्न विषयों पर आधारित दसियों ब्लाॅग का संचालन-सम्पादन करके कई लोगों को ब्लाॅगिंग की तरफ प्रवृत्त किया और अपनी साहित्यिक रचनाधर्मिता के साथ-साथ ब्लाॅगिंग को भी नये आयाम दिये।

नारी सम्बन्धी मुद्दों पर प्रखरता से लिखने वालीं आकांक्षा यादव का मानना है कि न्यू मीडिया के रूप में उभरी ब्लाॅगिंग ने नारी-मन की आकांक्षाओं को मुक्ताकाश दे दिया है। आज एक लाख से भी ज्यादा हिंदी ब्लाॅग में लगभग एक तिहाई ब्लाॅग महिलाओं द्वारा लिखे जा रहे  हैं। बकौल आकांक्षा, ये महिलाएं अपने अंदाज में न सिर्फ ब्लाॅगों पर सहित्य-सृजन कर रही हैं  बल्कि तमाम राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक मुददों से लेकर घरेलू समस्याओं, नारियों की प्रताड़ना से लेकर अपनी अलग पहचान बनाती नारियों को समेटते विमर्श, पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण से लेकर  पुरूष समाज की नारी के प्रति दृष्टि, जैसे तमाम विषय ब्लाॅगों पर चर्चा का विषय बनते हैं।

ब्लॉगर दम्पति यादव की 9 वर्षीया सुपुत्री अक्षिता (पाखी) को भारत की सबसे कम उम्र की ब्लॉगर माना जाता है, जो कि वर्तमान में हैप्पी आवर्स स्कूल, जोधपुर में कक्षा 4 की छात्रा हैं। अक्षिता की प्रतिभा को देखते हुए भारत सरकार ने  वर्ष 2011 में उसे "राष्ट्रीय बाल पुरस्कार" से सम्मानित किया, वहीं पिछले वर्ष अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका में उसे  "परिकल्पना कनिष्ठ सार्क ब्लॉगर सम्मान" से भी सम्मानित किया गया। इसके 'पाखी की दुनिया'  (http://pakhi-akshita.blogspot.in/) ब्लॉग को 100 से ज्यादा देशों में देखा-पढा जाता है और लगभग 450 पोस्ट वाले इस ब्लॉग को 260 से ज्यादा लोग नियमित अनुसरण करते हैं।

हिंदी ब्लॉगिंग की दशा और दिशा पर पुस्तक लिख रहे चर्चित ब्लॉगर कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि,  आज हिन्दी ब्लाॅगिंग में हर कुछ उपलब्ध है, जो आप देखना चाहते हैं। हर ब्लॉग का अपना अलग जायका है। यहाँ खबरें हैं, सूचनाएं हैं, विमर्श हैं, आरोप-प्रत्यारोप हैं और हर किसी का अपना सोचने का नजरिया है। तेरह सालों के सफर में हिंदी ब्लागिंग ने एक लम्बा मुकाम तय किया है। आज हर आयु-वर्ग के लोग इसमें सक्रिय हैं, शर्त सिर्फ इतनी है कि की-बोर्ड पर अंगुलियाँ चलाने का हुनर हो ।










बुधवार, 20 अप्रैल 2016

शाबास दीपा कर्माकर : ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट बनीं

मन में हौसला हो तो सब कुछ सम्भव है। इसे चरितार्थ कर दिखाया है त्रिपुरा की 22 वर्षीया दीपा कर्माकर ने, जो ओलम्पिक के लिए क्वालिफाई करने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट बन गई हैं। अब वह रियो  डि जनेरियो ओलिंपिक में जिम्नास्टिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी। पहली भारतीय महिला के अलावा वह 52 साल लंबे अंतराल बाद खेलों के महासमर के लिये क्वालीफाइंग करने वाली पहली भारतीय जिमनास्ट भी हैं। देश को स्वंतत्रता मिलने के बाद 11 भारतीय पुरुष जिमनास्ट ने ओलंपिक में शिरकत की थी, जिसमें से दो ने 1952, तीन ने 1956 और छह ने 1964 में भाग लिया था। लेकिन वह ओलंपिक के लिये क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट हैं। 18 अप्रैल को इस इतिहास को रचने वाली दीपा को रियो ओलंपिक के लिये क्वालीफाई करने वाली महिला कलात्मक जिमनास्ट में व्यक्तिगत क्वालीफायर की सूची में 79वीं जिमनास्ट सूचित किया गया है।

ओलंपिक के लिए क्‍वालिफाई करने के कुछ ही घंटों बाद दीपा ने रियो ओलंपिक खेलों की परीक्षण प्रतियोगिता में वाल्टस फाइनल में गोल्ड मेडल जीता। 22 साल की दीपा 14.833 प्वॉइंट के अपने बेस्ट प्रदर्शन के साथ महिला वाल्टस फाइनल में टॉप पर रहीं। दीपा ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की। दीपा के पिता दुलाल कर्माकर इस बात को लेकर परेशान थे कि दीपा को बंगाली मीडियम स्‍कूल में पढ़ाएं या फिर अंग्रेजी स्‍कूली में। उनकी इस दुविधा को भी दीपा ने ही दूर किया था। दीपा ने पिता से कहा था कि अंग्रेजी स्‍कूल में जाऊंगी तो जिम्‍नास्टिक की प्रेक्टिस नहीं कर पाऊंगी। उस समय दीपा की उम्र महज सात साल की थी। इस वजह यह थी कि बांग्‍ला स्‍कूल जिम्‍नास्टिक्‍स हॉल का उपयोग करने की इजाजत देती थी। दुलाल कर्माकर बताते हैं कि,’हम परेशान थे कि हम उसे अंग्रेजी से दूर रखकर सही कर रहें है या नहीं। लेकिन वह जिद पर अड़ी रही।’ उनके पिता के अनुसार अंग्रेजी सीखने का मोह छोड़कर दीपा ने सबसे बड़ा त्‍याग किया। 

अभी राजनीतिक विज्ञान में मास्‍टर्स कर रही दीपा  शुरुआत के दिनों में दीपा जिम्‍नास्‍ट को लेकर अनमनी थी। वह एक ही स्‍टेप बार-बार करके खुश नहीं थी लेकिन उसने खेल को नहीं छोड़ा। दीपा के पिता भारतीय खेल प्राधिकरण में वेटलिफ्टिंग के कोच हैं। वे कहते हैं’वह जिद्दी थी। अगर उसने ठान लिया कि कुछ पाना है तो उसे पाए बगैर वह बैठेगी नहीं। पहले नेशनल चैंपियनशिप, फिर इंडिया टीम, फिर कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स और अब ओल‍ंपिक।’ ओलंपिक के लिए क्‍वालिफाई करने के बाद दीपा ने घर पर मैसेज भेजा,’ हम क्‍वालिफाई हो गया।’ ओलंपिक क्‍वालिफिकेशन के लिए दीपा ने अक्‍टूबर और अप्रैल में हुए नेशनल चैंपियनशिप्‍स को भी छोड़ दिया। 2010 दिल्‍ली कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स में पदक न जीत पाने के बाद दीपा कई दिनों तक रोती रही थी। 2014 में पदक जीतकर उसने पिछली बार की गलती की भरपाई की। 
-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

शनिवार, 9 अप्रैल 2016

फोर्ब्स एशिया की सूची में शीर्ष पर नीता अंबानी, अरुंधती भट्टाचार्य सहित आठ भारतीय महिलाएं

नारी सशक्तिकरण के लिए महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण बहुत जरूरी है।  जब तक नारी अपने पैरों पर खड़ी होकर आर्थिक रूप से स्वावलम्बी नहीं होगी, समाज की मानसिकता जस की तस रहेगी। आज के दौर में तमाम महिलाएँ देश-दुनिया में कारपोरेट जगत, बैंकिंग जगत से लेकर विभिन्न आर्थिक समृद्धि वाले क्षेत्रों में न सिर्फ बखूबी कार्य कर रही हैं, बल्कि सफलता की नई इबारत भी लिख रही हैं। इसी क्रम में रिलायंस फाउंडेशन की प्रमुख नीता अंबनी को फोर्ब्स ने एशियाई की सबसे शक्तिशाली महिला कारोबारी करार दिया है जो इस क्षेत्र की 50 प्रमुख उद्यमियों की सूची में शीर्ष पर हैं। इस सूची में आठ भारतीय महिलाओं ने स्थान बनाया है।

स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक अरुंधती भटेटाचार्य को 2016 की एशिया की 50 शक्तिशाली महिला कारोबारी की सूची में दूसरा स्थान दिया गया है, जिसमें चीन, इंडोनेशिया, आस्ट्रेलिया, वियतनाम, थाइलैंड, हांगकांग, जापान, सिंगापुर, फिलिपीन और न्यूजीलैंड की प्रभावशाली महिलाएं शामिल हैं।

अंबानी और भट्टाचार्य के अलावा भारत की छह महिलाओं ने इसमें स्थान बनाया है जिनमें एमयू सिग्मा की मुख्य कार्यकारी अंबिगा धीरज (14), वेलस्पन इंडिया की मुख्य कार्यकारी दिपाली गोयनका (16), ल्यूपिन की मुख्य कार्यकारी विनीता गुप्ता (18), आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी चंदा कोचर (22), वीएलसीसी हेल्थकेयर की संस्थापक एवं उपाध्यक्ष वंदना लूथरा (25) और बायोकॉन की संस्थापक और चेयरमैन एवं प्रबंधन निदेशक किरण मजूमदार शॉ (28) शामिल हैं।

फोर्ब्स ने कहा, इस सूची में स्वीकार किया गया है कि कारोबारी दुनिया में महिलाएं अपनी जगह बना रही हैं लेकिन स्त्री-पुरुष असमानता बरकरार है। महिलाएं यह समझने की बेहतर स्थिति में हैं कि उन्हें नेतृत्व की स्थिति में आने और वहां बने रहने के लिए क्या करना होगा।

फोर्ब्स ने 52 वर्षीय नीता को भारतीय उद्योग जगत की प्रथम महिला करार देते हुए कहा कि वह राजगद्दी की सबसे करीबी ताकत है और उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज में अपनी बढ़ती हैसियत के कारण इस सूची में पहली बार स्थान बनाया है। रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रमुख उनके पति और भारत के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी हैं।
-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

लैंगिक अन्याय के विरुद्ध मुहिम लाई रंग : शनि शिंगणापुर मंदिर के 400 साल के इतिहास में पहली बार महिलाओं को पूजा करने की इजाजत


लैंगिक न्याय के लिए आंदोलन अंतत: रंग लाया और महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर में नवरात्र के पहले दिन 8 अप्रैल, 2016 को 400 साल पुरानी परंपरा टूट गई। महिलाओं ने मंदिर के चबूतरे पर चढ़कर पूजा अर्चना की। 

गौरतलब है कि शनि शिंगणापुर मंदिर शनिदेव को समर्पित है, शनिदेव हिंदू मान्यता में शनि ग्रह हैं। इस मंदिर की सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार महिला श्रद्धालुओं को खुले गर्भगृह पर जाने की इजाजत नहीं थी। इस मंदिर में दीवार और छत नहीं है। पावन भाग के रूप में पांच फुट का एक विशाल काला पत्थर है और उसकी शनि देव के रूप में पूजा की जाती है। आंदोलन शुरू होने के बाद मंदिर प्रबंधन ने पिछले दो महीनों में पुरुषों के लिए विशेष पूजा की पद्धति पर रोक लगा दी। अभी तक पुरुष और महिलाएं दोनों ही मूर्ति से समान दूरी पर प्रार्थना करते थे। केवल पुरोहितों को ही गर्भगृह में जाने की इजाजत है। महिलाओं के प्रवेश पर रोक संबंध सदियों पुरानी परंपरा का उल्लंघन करते हुए पिछले साल एक महिला ने शनि शिंगणापुर मंदिर में प्रवेश करने और पूजा करने की कोशिश की थी तब से  मंदिरों के गर्भगृह में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे पर बहस तेज हो गयी। इस घटना के बाद मंदिर समिति ने सात सुरक्षाकर्मियों को निलंबित कर दिया था और ग्रामीणों ने शुद्धिकरण किया था। उसके बाद तृप्ति देसाई की अगुवाई में भूमाता ब्रिगेड ने शनि मंदिर में इस पाबंदी का उल्लंघन करने के लिए अभियान शुरू किया और लैंगिक न्याय के लिए आंदोलन का निश्चय प्रकट किया। 

बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी इस मामले पर फैसला सुनाया था कि पूजा करने से महिलाओं को नहीं रोका जा सकता। इस आदेश के बाद भी मंदिर ट्रस्ट महिलाओं को पूजा करने के अधिकार के खिलाफ अड़ा हुआ था। शनि शिंगणापुर मंदिर ट्रस्ट ने शुक्रवार सुबह घोषणा की कि वे लोग महिलाओं को पूजा करने से नहीं रोकेंगे। इस तरह सुप्रसिद्ध शनि शिंगणापुर मंदिर के 400 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब महिलाओं को पूजा करने की इजाजत मिली।

महिलाओं को मंदिरों में प्रवेश के अधिकार की लड़ाई लड़ रहीं भूमाता ब्रिगेड की प्रमुख तृप्ति देसाई ने कहा है कि यह तो केवल अभी शुरुआत है। जिन-जिन मंदिरों में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है उनके खिलाफ उनका संघर्ष जारी रहेगा। उन्होंने बताया कि 13 अप्रैल को कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर में वे लोग प्रवेश के लिए संघर्ष करेंगी।

आशा की जानी चाहिए कि जिस देश में मातृ-शक्ति की पूजा की जाती है और उसे देवी का दर्जा दिया जाता है, वहाँ इस प्रकार की लैंगिक भेदभाव की परम्परा को सभ्य समाज बर्दाश्त नहीं करेगा और आगे बढ़कर नई इबारत लिखेगा !!
-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

नव वर्ष की हर्षित बेला...


नव वर्ष की हर्षित बेला पर,
खुशियां मिले अपार। 
यश, कीर्ति, सम्मान मिले, 
और बढे सत्कार। 
शुभ-शुभ रहे हर दिन हर पल,
शुभ-शुभ रहे विचार। 
उत्साह बढे चित चेतन में,
निर्मल रहे आचार। 
सफलतायें नित नयी मिले,
बधाई बारम्बार। 
मंगलमय हो काज आपके,
सुखी रहे परिवार। 

नवरात्र के शुभ पर्व पर हार्दिक शुभकामनायें .... जरा इस पर भी गौर कीजिएगा !!



नव वर्ष विक्रम संवत 2073 और चैत्र नवरात्रि पर्व पर  हार्दिक शुभकामनाएं !!

आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

बुधवार, 6 अप्रैल 2016

बिटिया आई, ऑफिस में नई रौनक लाई : बिटिया @ वर्क

बेटियां परिवार ही नहीं, समाज, देश और दुनिया के भी सुनहरे भविष्य की गंगोत्री हैं। आज स्कूल और कॉलेज में पढ़ रहीं बेटियों में से ही कुछ और मदर टेरेसा, इंदिरा गांधी, किरण बेदी, कल्पना चावला, सानिया मिर्जा निकलकर नई रोशनी बिखेरेंगी। इसी सद्भावना को ध्यान में रखकर राजस्थान पत्रिका समूह ने अपना अनूठा अभियान 'बिटिया@वर्क' आयोजित किया। इसके तहत 5 अप्रैल, 2016 को  कई अभिभावक 8 से 19 साल तक की अपनी बेटियों को लेकर अपने दफ्तर या कार्यस्थल पर लेकर पहुंचे। यह एक तरह से बेटी को आगे बढ़ाने, नया संसार दिखाने, अपने कर्मस्थल से परिचित कराने का दिन था।  अभिभावक के कामकाज से रू-ब-रू होना बेटियों के लिए नया अनुभव था। उनके चेहरों पर उत्साह था, रोमांच भी। बेटियों ने भी ये जाना कि मम्मी-पापा कितनी मेहनत करते हैं, तब जाकर उनका लालन-पालन कर पाते तरह से औपचारिक कार्यक्रमों, भाषणों से परे पत्रिका के इस अभियान ने बेटियों के लिए इस दिन को यादगार बना दिया। कुछ बेटियों ने तो अपने माता-पिता की तरह प्रशासनिक अधिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर,  टीचर बनने तक का संकल्प लिया। माता-पिता के लिए भी बेटियों को अपने काम से रू-ब-रू कराने का अलग तरह का अनुभव था।

इसी क्रम में हमारी प्यारी बेटियाँ अक्षिता (9) और अपूर्वा (5) भी 'राजस्थान पत्रिका' की पहल बिटिया @ वर्क के तहत अपने पापा श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ उनके ऑफिस पहुँचीं, जो कि राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर के निदेशक डाक सेवाएं हैं। इस अवसर पर राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित नन्ही ब्लॉगर अक्षिता ने राजस्थान पत्रिका को बताया कि पापा के ऑफिस जाकर और वहाँ की कार्य प्रणाली देखकर बहुत अच्छा और प्रेरणादायी लगा। मैं भी बड़ी होकर पापा जैसी ही आई.ए.एस. परीक्षा देकर ऑफिसर बनना चाहती हूँ।  पापा के ऑफिस में फाइलों के निपटान से लेकर तमाम प्रोजेक्ट्स की ऑनलाईन मॉनिटरिंग देखी। ऑफिस आकर देखा कि पापा कैसे लोगों की समस्या का समाधान करते हैं।  इस शानदार पहल के लिए पत्रिका का आभार। अपूर्वा की उम्र भले ही 5 वर्ष हो, पर यह भी अपना  रोमांच और उत्साह दिखाने से नहीं चूकी। 





-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav : http://shabdshikhar.blogspot.com/

मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

जम्मू कश्मीर में महबूबा मुफ़्ती : अब तक भारत में बनीं 16 महिला मुख्यमंत्री

नारी सशक्तिकरण के इस दौर में भी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी उंगलियों पर गिनी जा सकती है । भारतीय राजनीति में एक लम्बे समय से राजनैतिक स्तर पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की बात चल रही है, पर व्यवहारिक स्तर पर इसमें सक्रियता नजर नहीं आती। तभी तो लोकसभा और विधानमंडलों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने वाला बिल अपनी सच्ची नियति को प्राप्त नहीं कर पाया है।   

     भारतीय राजनीति में कुछेक महिलाएं शीर्ष पर स्थान बनाने में कामयाब हुई हैं। देश की राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, विपक्ष की नेता, कैबिनेट मंत्री और विभिन्न राज्यों में मुख्यमंत्री व राज्यपाल तक महिलाएं पदासीन रही हैं। अगर संसदीय राजनीति में महिलाओं के योगदान की बात करें, तो कुछ चेहरे अनायास ही सामने आ जाते हैं। ये वो चेहरे हैं, जो राजनीति में नारी-सशक्तिकरण के नए प्रतिमान गढ़ती नजर आती हैं। इनके बिना भारत की संसदीय राजनीति में महिला-शक्ति के परचम लहराने का इतिहास अधूरा है। इनके लिए महिला होने का मतलब सिर्फ घर-गृहस्थी से नहीं, बल्कि देश चलाने से भी था। यही वजह है कि आज भी राजनीति की बात होती है, तो इनका नाम स्वतः जुबान पर आ जाता है।  

भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल,  प्रथम महिला केन्द्रीय मंत्री (स्वास्थ्य मंत्री) राजकुमारी अमृत कौर, प्रथम महिला विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, प्रथम महिला रेल मंत्री ममता बनर्जी, प्रथम महिला सांसद  राधाबाई सुबरायण, राज्यसभा की प्रथम महिला उपसभापति  नजमा हेपतुल्ला, लोकसभा की प्रथम महिला अध्यक्ष मीरा कुमार, लोकसभा में प्रथम महिला प्रतिपक्ष नेता  सुषमा स्वराज, प्रथम महिला राज्यपाल सरोजिनी नायडू (उत्तर प्रदेश, 1947),  प्रथम महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी (उत्तर प्रदेश, 1963),  प्रथम  मुस्लिम महिला मुख्यमंत्री  सैयद अनवरा तैमूर (असोम, 1980),  प्रथम दलित महिला मुख्यमंत्री  मायावती (उत्तर प्रदेश, 1995), प्रथम महिला विधायक मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी, किसी  राज्य की विधान सभा की प्रथम महिला स्पीकर शन्नो देवी जैसी तमाम महिलाओं ने समय-समय पर भारतीय राजनीति को नई ऊँचाइयाँ दी हैं। अभी तक भारत में 20 महिलाएं राज्यपाल बन चुकी हैं, जिसमें राजस्थान की पहली महिला राज्यपाल प्रतिभा पाटिल देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं। 

विभिन्न राज्यों की बात करें  4 अप्रैल 2016 को जम्मू कश्मीर की मुख़्यमंत्री के रूप में महबूबा मुफ़्ती के शपथ लेने के बाद  मुख्यमंत्री के रूप में अब तक 16 महिलाओं ने गद्दी संभाली है। जम्मू और कश्मीर की तेरहवीं और एक महिला के रूप में महबूबा मुफ़्ती राज्य की प्रथम मुख्यमंत्री हैं। महबूबा मुफ्ती से पूर्व वर्ष 1980 में सैयदा अनवरा तैमूर किसी भरतीय राज्य (असम) की पहली मुस्लिम मुख्यमंत्री बनी थीं। इस प्रकार वे देश के किसी राज्य की दूसरी मुस्लिम मुख्यमंत्री हैं। फ़िलहाल, 16 महिला मुख्यमंत्रियों की बात की जाये तो इनमें सुचेता कृपलानी (उत्तर प्रदेश), नंदिनी सत्पथी (ओडिशा), शशिकला काकोदर (गोवा), सैयद अनवरा तैमूर (असोम), जानकी रामचंद्रन (तमिलनाडु), जयललिता (तमिलनाडु), मायावती (उत्तर प्रदेश), राजिंदर कौर भट्टल (पंजाब), राबड़ी देवी (बिहार), सुषमा स्वराज (दिल्ली), शीला दीक्षित (दिल्ली), उमा भारती (मध्य प्रदेश), वसुंधरा राजे (राजस्थान), ममता बनर्जी (प. बंगाल) और  आनंदीबेन पटेल (गुजरात), महबूबा मुफ़्ती (जम्मू कश्मीर) शामिल हैं। इस समय राजस्थान, प. बंगाल, तमिलनाडु, गुजरात और अब जम्मू कश्मीर सहित पाँच राज्यों में महिला मुख्यमंत्री पदासीन हैं।  अभी भी ऐसे तमाम राज्य हैं, जहाँ महिला मुख्यमंत्री नहीं बन सकी हैं।  जब तक राजनीति में महिलाओं की संख्या नहीं बढ़ेगी और उन पर विश्वास करते हुए उन्हें मुख्य भूमिका में नहीं रखा जायेगा, तब तक नारी सशक्तिकरण अधूरा ही कहा जायेगा !!
-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav : http://shabdshikhar.blogspot.in/

सोमवार, 4 अप्रैल 2016

जीका वायरस की गुत्थी सुलझाकर देविका सिरोही ने रचा विश्व पटल पर इतिहास

बेटियों को मौका मिले तो अपनी बुलंदियों के झंडे गाड़ने में समय नहीं लगता। उत्तर प्रदेश में मेरठ  में जन्मी होनहार वैज्ञानिक देविका सिरोही ने विश्व पटल पर इतिहास रचकर देश का सिर गर्व से ऊंचा किया। देविका सिरोही ने जीका वायरस की संरचना की खोज की है।  इनकी इस सफलता से घातक बीमारी के लिए प्रभावी उपचार के विकास में सफलता मिली है। संयुक्त राज्य अमेरिका में जीका वायरस के  संरचना की खोज करने वाली  देविका सात सदस्यीय वैज्ञानिक टीम की  सबसे कम उम्र की शोधार्थी हैं,  जिसने पहली बार जीका वायरस की संरचना की गुत्थी सुलझाई है। 29 साल की देविका  ने 31 मार्च 2016 को परडयू यूनिवर्सिटी लाफयिट यूएसए में शोध के अंतर्गत जी वायरस की खोज की है। 

गौरतलब है कि पिछले कई महीनों से जीका वायरस में विश्व के कई देशों में खौफ फैला रखा था। इस जीका वायरस की संरचना की खोज के बाद इस वायरस की वैक्सीन बनाना काफी आसान हो जायेगा। जीका, डेंगू की भांति बेहद खतरनाक और अजन्मे बच्चे के मस्तिष्क को हानि पहुंचाने वाला वायरस है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने  भी वैश्विक स्तर पर जीका  वायरस को जनता के स्वास्थ्य के लिए आपातकाल घोषित किया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार यह प्राणघातक बीमारियों को उत्पन्न करने वाले मच्छरों से संबंधित है। 

सिरोही ने अपनी स्कूलिंग मेरठ से पूरी की है।  उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से बायोकेमिस्ट्री में ग्रेजुएशन और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुंबई से मास्टर की डिग्री हासिल की है।   देविका के पिता डॉ एसएस सिरोही और माता रीना सिरोही देविका सहित सारी दुनिया उनकी इस उपलब्धि पर गौरवान्वित है। विश्व के सभी टीवी चैनलों पर देविका छाई हुई हैं। 

(Indian doctoral student and  Part Of The US Team That Decoded Zika Virus, Devika Sirohi (second from left) along with her colleagues at Purdue University)

अपनी सफलता पर देविका का कहना है कि इस खोज के पीछे कठिन मेहनत का हाथ है. उन्होंने कहा कि वायरस का पता लगाने में उनकी टीम को महीनों लग गए. इस विषय पर रिसर्च करने के दौरान वो मुश्किल से ही कभी दो-तीन घंटों की नींद ले पाती थी. उन्हें भरोसा है कि वायरस की संरचना का पता लग जाने के बाद इस बीमारी के इलाज के रास्ते भी निकल आएंगे. सिरोही बताती हैं, 'जब मैं अमेरिका आई थी तो यह नहीं पता था कि मुझे यहां इतनी बड़ी उपलब्धि मिलेगी. मुझे यहां अपने डॉक्टरल रिसर्च को शुरू किए पांच साल बीत चुके हैं. इस साल के अंत तक मैं अपना थीसेस जमा कर दूंगी. जीका की संरचना का पता लगाने की पूरी प्रक्रिया चुनौतियों से भरी थी. अब जब उसकी संरचना का पता चल गया है तो इसकी रोकथाम के रास्ते भी जरूर निकल आएंगे.'
 -आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav@ http://shabdshikhar.blogspot.in/