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बुधवार, 29 जुलाई 2015

जन्मदिन की ख़ुशी

 आखिर फिर से हमारा जन्मदिन आ गया.… 30 जुलाई।  साल में एक ही बार तो आता है, पर मजबूर कर जाता है एक गहन विश्लेषण के लिए कि क्या खोया-क्या पाया इस एक साल में...और फिर दुगुने उत्साह के साथ लग जाती हूँ आने वाले दिनों के लिए. न जाने कितनी जगहों पर अपना जन्मदिन सेलिब्रेट करने का सौभाग्य मिलेगा। जीवन साथी कृष्ण कुमार यादव जी, बेटियाँ अक्षिता (पाखी) और अपूर्वा मेरे हर जन्मदिन को यादगार बनाते हैं।  इनके बिना तो सब कुछ सूना है। 

गाजीपुर (उप्र) से आरम्भ हुआ यह सफर विवाह पश्चात लखनऊ, कानपुर, पोर्टब्लेयर, इलाहाबाद के बाद अब सपरिवार जोधपुर में। कभी समुद्र का किनारा, तो कभी गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती का अद्भुत संगम और अब मरू स्थली कहे जाने वाले जोधपुर में। अब लगता है कि पहाड़ों पर भी जन्मदिन मना लेना चाहिए। ख़ैर, इसी बहाने पर्यटन के साथ-साथ विभिन्न जगहों की संस्कृति, लोकाचार और वहां के लोगों से भी रूबरू होने का मौका मिलता है।  हर पल हम कुछ सीखते हैं और कहीं-न-कहीं लोगों को सीखते भी हैं। 



ब्लागिंग जगत में आप सभी के स्नेह से सदैव अभिभूत रही हूँ. जीवन के हर पड़ाव पर आप सभी की शुभकामनाओं और स्नेह की धार बनी रहेगी, इसी विश्वास के साथ.... !!

प्रेरणा पुंज बने रहेंगे डॉ. कलाम

देश के महान वैज्ञानिक एवं वास्तविक अर्थों में एक महान पुरुष व जनता के राष्ट्रपति कहे जाने वाले डॉ. कलाम के निधन से पूरा देश स्तब्ध है| डॉ. कलाम भले ही दूसरे लोक में चले गए पर उनके दिखाए रास्ते सदियों तक लोगों के लिए प्रेरणा पुंज बने रहेंगे। उनके कुछ प्रसिद्ध कथन सदैव प्रासंगिक और जीवन्त रहेंगे-

1. सपने सच हों इसके लिए सपने देखना जरूरी है.

2. छात्रों को प्रश्न जरूर पूछना चाहिए. यह छात्र का सर्वोत्तम गुण है.

3. युवाओं के लिए कलाम का विशेष संदेशः अलग ढंग से सोचने का साहस करो, आविष्कार का साहस करो, अज्ञात पथ पर चलने का साहस करो, असंभव को खोजने का साहस करो और समस्याओं को जीतो और सफल बनो. ये वो महान गुण हैं जिनकी दिशा में तुम अवश्य काम करो.

4. अगर एक देश को भ्रष्टाचार मुक्त होना है तो मैं यह महसूस करता हूं कि हमारे समाज में तीन ऐसे लोग हैं जो ऐसा कर सकते हैं. ये हैं पिता, माता और शिक्षक.

5. मनुष्य को मुश्किलों का सामना करना जरूरी है क्योंकि सफलता के लिए यह जरूरी है.

6. महान सपने देखने वालों के सपने हमेशा श्रेष्ठ होते हैं.

7. जब हम बाधाओं का सामना करते हैं तो हम पाते हैं कि हमारे भीतर साहस और लचीलापन मौजूद है जिसकी हमें स्वयं जानकारी नहीं थी. और यह तभी सामने आता है जब हम असफल होते हैं. जरूरत हैं कि हम इन्हें तलाशें और जीवन में सफल बनें.

8. भगवान उसी की मदद करता है जो कड़ी मेहनत करते हैं. यह सिद्धान्त स्पष्ट होना चाहिए.

9. हमें हार नहीं माननी चाहिए और समस्याओं को हम पर हावी नहीं होने देना चाहिए.

10. चलो हम अपना आज कुर्बान करते हैं जिससे हमारे बच्चों को बेहतर कल मिले.

शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

ऐसे बनीं आज़मगढ़ की अंजुम आरा, देश की दूसरी मुस्लिम महिला आईपीएस

सिविल सेवाओं में महिलाएं नित्य नए मुकाम गढ़ रही हैं।  समाज के हर वर्ग की महिलाओं का प्रतिनिधित्व आईएएस, आईपीएस और अलाइड सेवाओं में बढ़ रहा है। निश्चितत: इंसान मन में कुछ करने की ठान ले तो दूसरों के लिए मिसाल कायम कर सकता है। ऐसी ही एक मिसाल हैं देश की दूसरी मुस्लिम आईपीएस महिला अंजुम आरा, जिन्होनें तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए ये मुकाम हासिल किया। इससे पहले मुंबई की गुजरात कैडर की सारा रिकावी ने पहली मुस्लिम महिला आईपीएस बनने का गौरव हासिल किया था। मुस्लिम समाज में जहां लड़कियों को बुर्के में रहने के लिए बाध्य किया जाता रहा है, वहीं पुराने रीति रिवाजों से उठकर देश की दूसरी मुस्लिम आईपीएस बनकर अंजुम आरा ने देश में एक नया मुकाम हासिल किया है। 

 उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के छोटे से गांव कम्हरिया में जन्मी अंजुम हालांकि शहर में पढ़ी नहीं लेकिन उनके पिता अयूब शेख की शिक्षा-दीक्षा इसी गांव में हुई।  पिता अयूब शेख अभियंत्रण सेवा में हैं, मां गृहिणी है। 
वर्ष 1985 में पिता अयूब को ग्रामीण अभियंत्रण सेवा में अवर अभियंता की नौकरी मिली। पहली तैनाती सहारनपुर हुई तो वह वहीं बस गए। अंजुम अपने भाइयों-बहनों में दूसरे नम्बर की है। अंजुम की प्राथमिक शिक्षा गंगोह, सहारनपुर  स्थित सरस्वती शिशु मंदिर में हुई। सहारनपुर से हाईस्कूल एचआर इंटर कॉलेज से इंटर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके बाद लखनऊ के एक इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की प्रथम श्रेणी में डिग्री हासिल करने के बाद  वह प्रशासनिक सेवा की तैयारियों में जुट गयी। कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने आइपीएस-2011 बैच की परीक्षा उत्तीर्ण कर अपना मुकाम हासिल किया। 

यह सफर इतना आसान भी नहीं था।  अंजुम ने जब नौकरी की इच्छा अपने परिवार वालों के सामने रखी तो संगे संबंधियों रिश्तेदारों ने इस पर आपत्तियां जतानी शुरू कर दी। संबंधियों को उसका घर से निकलना तक गंवारा नहीं था। परिवार में भी बुर्का प्रथा को महत्व दिया जाता था। लहरों से डर के नौका पार नहीं होती और कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती को आत्मसात करते हुए अंजुम अपनी राह पर चलती रहीं और रिश्तेदारों के तमाम विरोधों के बीच उनके पिता ने उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। अंतत: कड़ी मेहनत और लगन से 2011 में उनका चयन आईपीएस में हुआ।  ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उन्हें मणिपुर कैडर मिला। कुछ समय वहां नौकरी करने के बाद उनकी तैनाती हिमाचल की राजधानी शिमला में बतौर एएसपी हुई। अंजुम के पति युनूस भी आईएएस अधिकारी हैं।  यह वही आईएएस हैं जिन पर सोलन के नालागढ़ में कुछ खनन माफिया ने ट्रैक्टर चलाने की कोशिश की थी। 

 अंजुम अपनी इस कामयाबी का श्रेय अपने पिताजी  को देती हैं। अंजुम का कहना है कि पेरेंट्स को पुरानी प्रथाओं को छोड़कर लड़कियों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए। वे तमाम रूढ़ियों को पीछे छोड़ते हुए नित नए मुकाम के लिए तत्पर हैं और अब कइयों के लिए प्रेरणास्रोत भी !! 

गुरुवार, 23 जुलाई 2015

कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए संदीप कौर की अनूठी पहल : गर्भ में आते ही ले लेती हैं बेटियों को गोद

बेटियाँ भले ही समाज में अपनी प्रतिभा से रोशनी फैला रही हों, पर उनकी उपलब्धियों को सामाजिक मान्यता मिलने में अभी भी देरी है। बेटियाँ लाख सफलता के नए मुकाम रचें, पर समाज की मानसिकता अभी भी उन्हें परिवार में दोयम स्थान ही देती है। ऐसी स्थिति में,   जिस घरमें पहले से दो बेटियां हों वहां तीसरे गर्भ का मतलब एक बेटा ही होता है। अगर यही गर्भ बेटी बनकर सामने आए तो उसे बदकिस्मत कहते हैं। पर इस बदकिस्मती को किस्मत में बदलने का कार्य करती हैं  संदीप कौर। 

संयोगवश, अगमजोत भी ऐसे ही परिवार की तीसरी बेटी बनने जा रही थी, जहां उसे दुनिया में न आने देने के रास्ते खोजे जा रहे थे। लेकिन जैसे ही संदीप कौर को पता चला, वो परिवार से मिलीं और गर्भ में बेटी को खत्म न करने को कहा। बोलीं- उसे इस दुनिया में आने दो, मैं बनूंगी उसकी मां, मैं पालूंगी उसे।  अगमजोत आज पौने दो साल की है। हरदीप कौर, सिमरदीप कौर की कहानियां भी ऐसी ही हैं, जिन्हें संदीप ने गोद लेकर उन अजन्मी बेटियों को दुनिया में आने की राह खोल दी, जो कोख में ही मार दी जाती हैं। संदीप कौर ऐसी 80 बेटियों को गोद ले चुकी हैं। भ्रूण हत्या के खिलाफ इस अनोखी पहल की शुरूआत करते हुए संदीप 260 बेटियां अपना चुकी हैं। इनमें बेसहारा और अनाथ बच्चियां भी शामिल हैं। 

बेटियों के प्रति इतनी सुंदर मानवीय भावना रखने वाली संदीप कौर के बारे में यह सुनना अजीब सा लगता है कि आतंकवाद के दौर में वे खालिस्तान लहर का हिस्सा रहीं। उनके पति धर्म सिंह काश्तीवाल बब्बर खालसा के सक्रिय सदस्य थे, जो पुलिस एनकाउंटर में मारे गए। संदीप कौर को हथियार सप्लाई करने के आरोप में टाडा के तहत जेल जाना पड़ा था। 1996 में जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने सेवा का रास्ता चुना और ट्रस्ट की स्थापना की। 

गुरुसाहिब के सिद्धांत ‘सो क्यों मंदा आखिए, जित जम्मे राजान’ को लेकर चलने वाली संदीप कौर अमृतसर के सुल्तानविंड गांव में ‘भाई धर्म सिंह खालसा ट्रस्ट’ चला रही हैं। वे कहती हैं कि मुझे जहां भी ऐसा सुनाई पड़ता है कि अबॉर्शन होने वाला है, मैं तुरंत वहां पहुंच जाती हूं। संदीप कौर कन्याभ्रूण हत्या के खिलाफ कई परिवारों से मिलीं  अौर उन्हें समझाया और उनका यह अभियान निरंतर जारी है। उनके समझाने  का आलम यह हुआ क़ि  कई बार तो बेटी पैदा होने के बाद ज्यादातर परिवारों के मन में मोह जाग जाता है और वह उसे अपना लेते हैं। कुछेक परिवार ऐसे होते हैं जो बच्ची के ट्रस्ट में जाने के बाद वापस ले जाते हैं। फ़िलहाल, ट्रस्ट में पली-बढ़ी बच्चियां आज हॉस्टल में पढ़ाई कर ही हैं। इनमें कई लड़कियां बेसहारा हैं तो कई के मां-बाप मर चुके हैं। पर संदीप कौर के अंदर का मातृत्व अभी भी जिन्दा है और उनके इस हौसले पर ही टिकी है तमाम उन बेटियों की आँखों का सपना, जिसे उनके माँ-पिता गर्भ में ही ख़त्म कर देना चाहते थे !!

सोमवार, 20 जुलाई 2015

डॉयचे वेले की बेस्ट ऑफ एक्टिविज्म प्रतियोगिता में 'पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड' श्रेणी के तहत 'शब्द-शिखर' बना हिंदी का सबसे लोकप्रिय ब्लॉग


डॉयचे वेले की बॉब्स - बेस्ट ऑफ ऑनलाईन एक्टिविज्म प्रतियोगिता-2015  में इंटरनेट यूजरों ने पिछले दिनों 'पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड' श्रेणी में  'शब्द-शिखर' (www.shabdshikhar.blogspot.in/) ब्लॉग  को हिंदी के सबसे लोकप्रिय ब्लॉग के रूप में चुना। हिंदी सहित 14 भाषाओं में पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड के तहत एक-एक सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग चुना गया, जिसमे कुल मिला कर करीब 30,000 वोट डाले गए। ज्यूरी ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि, ''आकांक्षा यादव साहित्य, लेखन और ब्लॉगिंग के क्षेत्र में सक्रिय हैं।  उन्हें हिन्दी में ब्लॉग लिखने वाली शुरुआती महिलाओं में गिना जाता है।  आकांक्षा महिला अधिकारों पर लिखना पसंद करती हैं।  अपने ब्लॉग में वह अपने निजी अनुभव और कविताएं भी शामिल करती हैं।''  


 गौरतलब है कि द बॉब्स – बेस्ट ऑफ आनलाइन एक्टिविज्म के जरिए डॉयचे वेले 2004 से एक ऐसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता आयोजित कर रहा है जो ऐसे ब्लॉगरों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को सम्मानित करती है जो इंटरनेट से जुड़ कर अभिव्यक्ति की आजादी और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए काम कर रहे हैं। प्रतियोगिता के लिए 14 सदस्यों वाली अंतरराष्ट्रीय जूरी ने विभिन्न वर्गों में 112 वेबसाइटों को नामांकित किया। इस साल 4,800 से ज्यादा वेबसाइटों और ऑनलाइन प्रोजेक्टों के सुझाव बॉब्स की टीम तक पहुंचे। विजेताओं को 23 जून को जर्मनी के बॉन शहर में होने वाले ग्लोबल मीडिया फोरम के दौरान पुरस्कृत किया गया।  इस अवसर पर कार्यक्रम में नहीं पहुँच पाने पर हमारा प्रमाण-पत्र डॉयचे वेले द्वारा डाक से भेजा गया, जिसे आप सभी के साथ साझा करते हुए प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है !!

THE BOBS : Best of Online Activism


Winner Certificate
Best of Online Activism 2015

Category
People's Choice for Hindi

Awarded to
Shabd Shikhar
Represented by Akanksha Yadav

Deutsche Welle would like to recognize
Shabd Shikhar for outstanding achievements
in online activism as a winner of The Bobs 2015.



Peter Limbourg
Director General of Deutsche Welle

June 23, 2015



शनिवार, 4 जुलाई 2015

आईएएस परीक्षा-2014 के रिजल्ट घोषित, टॉप फाइव में से चार लड़कियाँ


संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा आज घोषित किए गए प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षा के नतीजों में महिलाओं ने शीर्ष तीन स्थान हासिल किए हैं। यूपीएससी द्वारा घोषित नतीजों के अनुसार इरा सिंघल ने पहला, रेणु राज ने दूसरा और निधि गुप्ता ने तीसरा स्थान हासिल किया।


दिल्ली की रहने वाली ईरा और निधि दोनों ही भारतीय राजस्व सेवा (सीमा शुल्क और केंद्रीय आबकारी) अधिकारी हैं जबकि रेणु पेशे से डॉक्टर हैं और केरल की रहने वाली हैं। इरा ने कहा, ‘‘मैं सच में बहुत खुश हूं। मुझे विश्वास नहीं हो रहा। मैंने बस परीक्षा की तैयारी की थी। शारीरिक रूप से निशक्त होने के बावजूद इरा ने सामान्य श्रेणी में परीक्षा में पहला स्थान किया। उन्होंने कहा, ‘‘मैं आईएएस अधिकारी बनना चाहती थी। मैं शारीरिक रूप से निशक्त लोगों के लिए कुछ करना चाहती हूं।’’

अपने पहले ही प्रयास में परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल करने वाली रेणु राज ने तिरूवनंतपुरम से कहा, ‘‘मैं नतीजे के बारे में जानकार बहुत खुश हूं। मैं पिछले एक साल से परीक्षा की तैयारी कर रही थी।’’ केरल के कोल्लम जिले के एक अस्पताल में काम करनी वाली रेणु कोट्टयम की रहने वाली हैं।

तीसरा स्थान हासिल करने वाली निधि ने कहा कि यह उनके लिए एक गर्व का पल है। वर्तमान में सहायक सीमा शुल्क एवं केंद्रीय आबकारी आयुक्त के तौर पर काम कर रही निधि ने कहा, ‘‘यह सच में एक गर्व का पल है। मैंने कड़ी मेहनत की और आखिरकार उसका फल मिला।’’
यूपीएससी के अनुसार विभिन्न केंद्रीय सरकारी सेवाओं में नियुक्ति के लिए कुल 1,236 उम्मीदवारों की सिफारिश की गयी है जिनमें 590 सामान्य श्रेणी, 354 अन्य पिछड़ा वर्ग, 194 अनुसूचित जाति और 98 अनुसूचित जनजाति के हैं। सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से कुल 1,364 पद भरे जाएंगे। 254 अन्य उम्मीदवार प्रतीक्षा सूची में हैं।

यूपीएससी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यूपीएएसी ने पहली बार व्यक्तित्व परीक्षण या साक्षात्कार के खत्म होने के चौथे दिन ही नतीजे घोषित कर दिए। यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा तीन चरणों – प्रारंभिक, मुख्य एवं साक्षात्कार – में संपन्न होती है। इस प्रतिष्ठित परीक्षा के जरिए भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) सहित कई अन्य केंद्रीय सेवाओं के लिए अधिकारियों का चयन किया जाता है।

देश भर के 59 केंद्रों में 2,137 स्थानों पर पिछले साल 24 अगस्त को सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा आयोजित की गई थी। करीब 9.45 लाख उम्मीदवारों ने इसके लिए आवेदन किया था पर करीब 4.51 लाख उम्मीदवार परीक्षा में शामिल हुए।

अधिकारी ने बताया कि इनमें से 16,933 उम्मीदवारों को मुख्य परीक्षा के लिए सफल घोषित किया गया था। मुख्य परीक्षा का आयोजन पिछले साल दिसंबर में किया गया था जिसमें 16,933 में से 16,286 उम्मीदवार ही शामिल हुए।

उन्होंने बताया कि सिविल सेवा मुख्य परीक्षा के नतीजे इस साल 13 मार्च को घोषित किए गए थे। 3,308 लोगों को साक्षात्कार में शामिल होने के योग्य घोषित किया गया। इनमें से 3,303 उम्मीदवार साक्षात्कार में शामिल हुए। साक्षात्कार का आयोजन 27 अप्रैल से 30 जून तक हुआ। अधिकारी ने कहा, ‘‘उम्मीदवारों और केंद्रों या उप केंद्रों की संख्या के लिहाज से यह यूपीएससी द्वारा आयोजित की गयी अब तक की सबसे बड़ी परीक्षा थी।’’