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शुक्रवार, 19 जून 2015

देश की पहली शत प्रतिशत नेत्रहीन महिला आईएफएस ऑफिसर बनी बेनो जेफाइन

मन में हौसला हो तो कुछ भी असंभव नहीं है।  इसे सच कर दिखाया है चेन्नई की  25 वर्षीय बेनो जेफाइन ने। बेनो जेफाइन 69 साल पुरानी भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) की परीक्षा पास करने वाली पहली शत प्रतिशत दृष्टिहीन छात्रा हैं।  उन्होंने 2013-14 सिविल सेवा परीक्षा में 343 रैंक प्राप्त किया है।

 वर्तमान में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में प्रॉबेशनरी ऑफिसर (पीओ) के तौर पर कार्यरत  बीनो जेफाइन अपने पिता ल्यूक एंथनी चार्ल्स के साथ रहती है जो कि एक रेलवे अधिकारी हैं। उनकी माँ एक गृहिणी है। उनके भाई, ब्रूनो जेवियर, कनाडा में एक इंजीनियर के रूप में काम करता है। इस मुकाम तक पहुँचने के लिये बीनो ने ब्रेल पर अपनी निर्भरता छोड़कर जॉब एक्सेस विद स्पीच (JAWS) नाम के सॉफ्टवेयर की मदद ली। इस सॉफ्टवेयर की मदद से दृष्टिबाधित लोग कंप्यूटर स्क्रीन पढ़ सकते हैं। इस सॉफ्टवेयर को स्मार्टफोन से भी एक्सेस किया जा सकता है। बीनो को उनकी मां किताबें और अखबार पढ़कर सुनाया करती थीं। 

अपने नाम के पीछे छुपे हुए राज को वह कुछ यूँ खोलती हैं कि बेनो का मतलब होता है  भगवान की बेटी और जेफाइन मतलब होता है छिपा हुआ खजाना। वाकई उन्होंने अपने नाम को सच कर दिखाया। बेनो का बचपन सामान्य तरीके से बीता। उनके परिवार में किसी ने भी कभी उन्हें विकलांग होने का अहसास नहीं दिलाया।  लिटिल फ्लावर कॉन्वेंट स्कूल से उनकी आरम्भिक शिक्षा आरम्भ हुई तो अध्यापकों ने  हर मोड़ पर सहयोग किया।  बचपन में बहुत बोलने वाली बेनो ने अपनी पहली स्पीच यूकेजी में जवाहरलाल नेहरू के ऊपर दी थी और  प्रथम पुरस्कार हासिल किया था। शुरुआती दिनों में,  बेनो को जो भी बोलना होता था, वह उसे पहले से कॉपी में लिख देती थी फिर उसे याद करती थी।  छठीं कक्षा में आने के बाद उन्होंने एक्सटेम्पोर बोलना शुरू कर दिया।  पढ़ाई के साथ-साथ बेनो को सदैव से बहुत पसंद है।  स्कूल के बाद,  अंग्रेजी साहित्य में अपनी डिग्री प्राप्त करने के लिए बेनो ने स्टेला मैरिस कॉलेज में दाखिला  लिया और लोयोला कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। एक अंधे स्कूल से सामान्य कॉलेज जाने में बेनो को कोई परेशानी नहीं हुई क्योंकि घर पर या बाहर किसी ने भी उनके साथ अंधों के जैसा बर्ताव नहीं किया था। इससे उन्हें एक सामान्य जीवन जीने का अत्मविश्वास मिला।

पूर्व राजनायिकों ने नेत्रहीन कैंडिडेट्स को आईएफस में भर्ती देने का फैसला लिया, जिसका फायदा बीनो को मिला। पूर्व राजनायिक टी.पी. श्रीनिवासन कहते हैं, 'यह एक अच्छा और उदार फैसला है। बीनो को अपनी ड्यूटी निभाने में कुछ दिक्कतें जरूर होंगी लेकिन उसने अब तक बहुत अच्छा परफॉर्म किया है। मुझे यकीन है कि वह यहां भी शानदार प्रदर्शन करेगी। वैसे भी आईएएस अधिकारियों को जितना फील्ड वर्क करने की जरूरत होती है उतनी आईएफएस अधिकारियों को नहीं। आईएफएस अधिकारियों को स्टडी और अनैलेसिस करने में गाइडेंस देना होता है।'


बेनो  जेफाइन को केंद्र सरकार से नियुक्ति आदेश मिल चुका है। उन्हें 60 दिन के भीतर कामकाज संभालना है। जेफाइन ने कहा कि उन्हें बताया गया कि नरेंद्र मोदी सरकार की प्रोत्साहित करने वाली नीति से उन्हें उनकी नियुक्ति में आने वाले किसी संभावित प्रक्रियात्मक विलंब को पार पाने में मदद मिली। उन्होंने प्रधामंत्री को धन्यवाद देते हुए कहा, मुझे बताया गया कि मैं यद्यपि आईएफएस के लिए पात्र थी लेकिन पूरी तरह से दृष्टिहीन को इससे पहले यह पद नहीं दिये गए। फिलहाल इस उपलब्धि के बाद हर संस्थान जेफाइन को प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में बुला रहा है और अपने विद्यार्थियों को उनसे रूबरू करा रहा है, शायद बेनो  जेफाइन कईयों के लिये मिसाल साबित हों। हो सकता है उनकी आँखों में रोशनी न हो, पर यदि मन में जज्बा और आँखों में सपने देखने का साहस हो तो कोई भी मंजिल आसान जरूर बन जाती है !!

मंगलवार, 16 जून 2015

मारीशस की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं अमीना गुरीब फकिम

नारी-सशक्तिकरण की बात पूरी दुनिया में चल रही है।  राजनीति में तमाम महिलाओं ने अपनी भागीदारी दर्ज की है, पर उनमें से कुछेक ही सत्ता के शीर्ष पर पहुँची हैं। अपने देश भारत की ही बात करें तो अब तक प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पद पर मात्र एक-एक महिलाएं इंदिरा गाँधी और प्रतिभा पाटिल ही पहुँची हैं। तमाम ऐसे देश हैं, जहाँ अभी तक महिलाएं सत्ता शीर्ष तक नहीं पहुँच सकी हैं।  इन्हीं में से एक मॉरीशस में 56 साल की अमीना गुरीब फकिम देश की नई राष्ट्रपति होंगी। 

पूर्व अकादमिक हस्ती और वैज्ञानिक अमीना गुरीब फकिम को मारीशस की पहली महिला राष्ट्रपति बनने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ है।  वह लम्बे समय से मारीशस में औरतों के अधिकारों के लिए सक्रिय रही हैं। वह पांच वर्ष के लिए राष्ट्रपति पद पर रहेंगी। उन्होंने कैलाश प्रयाग का स्थान लिया है। उनकी उच्च शिक्षा ब्रिटेन में हुई है। उनके दो बच्चे हैं। अमीना गुरीब फकिम के पति सर्जन हैं। उन्हें देश के प्रधानमंत्री अनिरुद् जुगन्नाथ का करीबी माना जाता है।

गौरतलब है कि  मारीशस को लघु भारत माना जाता है। वहां पर भारतवंशी बहुमत में है। अमीना गुरीब फकिम के पुरखे भारत से ही मारीशस में जाकर बसे थे। इस उपलब्धि पर हम सभी को गर्व होना चाहिए !! 

रविवार, 7 जून 2015

नारी सशक्तिकरण और नारी स्वातंत्र्य के हथियार के रूप में भी उभरकर सामने आया हिंदी ब्लॉग

हिंदी ब्लॉगिंग  ने महिलाओं को खुलकर अपनी बात रखने का व्यापक मंच दिया है। तभी तो ब्लाॅगिंग का दायरा परदे की ओट से बाहर निकल रहा है। इनमें प्रशासक, डाक्टर, इंजीनियर, अध्यापक, विद्यार्थी, पर्यावरणविद, वैज्ञानिक, शिक्षाविद्, समाजसेवी, साहित्यकार, कलाकार, संस्कृतिकर्मी, रेडियो जाकी से लेकर सरकारी व कारपोरेट जगत तक की महिलाएं शामिल हैं। कामकाजी महिलाओं के साथ-साथ गृहिणियां भी इसमें खूब हाथ आजमा रही हैं। महिलाओं में हिन्दी ब्लागिंग आरम्भ करने का श्रेय इन्दौर की पद्मजा को है, जिन्होंने वर्ष 2003 में ‘कही अनकही‘ ब्लाग के माध्यम से इसकी शुरूआत की। पद्मजा उस समय ‘वेब दुनिया‘ में कार्यरत थीं। उक्त उद्गार चर्चित हिंदी ब्लॉगर लेखिका आकांक्षा यादव ने कोलम्बो (श्री लंका) के कॉनकॉर्ड ग्रैंड होटल में 25 मई, 2015  को हुए अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में "हिंदी ब्लॉगिंग की समृद्धि में महिलाओं का योगदान" विषय पर आयोजित परिचर्चा में  व्यक्त किये। 


परिचर्चा में विषय-प्रवर्तन करते हुए आकांक्षा यादव ने  कहा कि 21वीं सदी नारी-सशक्तिकरण की है, बेटियों की है।  हर क्षेत्र में नारियाँ बुलंदियों को छू रही हैं, नए आयाम गढ़ रही हैं, फिर भला ब्लॉगिंग का क्षेत्र कैसे अछूता रह जाता।  आज एक चौथाई से ज्यादा हिंदी ब्लॉग महिलाओं द्वारा संचालित हैं। आज की महिला यदि संस्कारों और परिवार की बात करती है तो अपने हक के लिए लड़ना भी जानती है।
ऐसे में नारियों के ब्लॉग पर स्त्री की कोमल भावनाएं हैं तो दहेज, भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, आनर किलिंग, सार्वजनिक जगहों पर यौन उत्पीड़न, लिव-इन-रिलेशनशिप, महिला आरक्षण, सेना में महिलाओं के लिए कमीशन, न्यायपालिका में महिला न्यायधीशों की अनदेखी, फिल्मों-विज्ञापनों इत्यादि में स़्त्री को एक ‘आबजेक्ट‘ के रूप में पेश करना, साहित्य में नारी विमर्श के नाम पर देह-विमर्श का बढ़ता षडयंत्र, नारी द्वारा रुढि़यों की जकड़बदी को तोड़ आगे बढ़ना....जैसे तमाम विषयों के बहाने स्त्री के ‘स्व‘ और ‘अस्मिता‘ को तलाशता व्यापक स्पेस भी है। साहित्य की विभिन्न विधाओं से लेकर प्रायः हर विषय पर सशक्त लेखन और संवाद स्थापित करती महिला हिंदी ब्लागर, ब्लागिंग जगत में काफी प्रभावी हैं। आकांक्षा यादव ने जोर देकर कहा कि आज  ब्लॉग स्त्री आन्दोलन, स्त्री विमर्श, महिला सशक्तिकरण और नारी स्वातंत्र्य के हथियार के रूप में भी उभरकर सामने आया है। यहाँ महिला की उपलब्धि भी है, कमजोरी भी और बदलते दौर में उसकी बदलती भूमिका भी। 


इस अवसर पर लखनऊ से प्रकाशित रेवांत पत्रिका की संपादक डॉ. अनीता श्रीवास्तव ने कहा कि महिलाएँ ब्लॉगिंग के क्षेत्र में मुखरता के साथ लिख रही हैं और वे पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ रही हैं | हिन्दी ब्लागिंग में महिलाओं की सक्रियता सिर्फ भारत तक ही नहीं बल्कि विदेशों तक विस्तारित है। 


कवयित्री और ब्लॉगर सुनीता प्रेम यादव (औरंगाबाद) ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज भारत ही नहीं दुनिया के हर कोने में महिलाओं द्वारा हिंदी में बड़ी सक्रियता से साथ ब्लॉग लिखे जा रहे हैं। उन्होंने ब्लॉगिंग और हिंदी साहित्य को जोड़ते हुए यह भी चेताया कि  आज मूल्य आधारित लेखन की जरूरत है, जिसके अभाव में ब्लॉगिंग अपनी प्रासंगिकता खो देगा। 

रायपुर (छतीसगढ़) से आयी डॉ. उर्मिला शुक्ल ने ब्लॉगिंग और सोशल मिडिया की  विसंगतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि हम हजारों मील  दूर बैठे मित्रों से तो बात कर लेते है किन्तु अपने घर बैठे सदस्यों से संवाद नहीं स्थापित कर पाते |

डॉ अर्चना श्रीवास्तव, (प्राचार्य, स्नातकोत्तर महाविद्यालय, चंदौली) ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि हर महिला-ब्लागर का अपना अनूठा अंदाज है, अपनी विशिष्ट प्रस्तुति है। ब्लागिंग में हर क्षेत्र में काम करने वाली महिलाएं अपनी अभिव्यक्तियों को विस्तार दे रही हैं, अतः इनका दायरा भी व्यापक है। आज महिलाएँ हर विधा मसलन कविता, कहानी, लघुकथा, संस्मरण, यात्रा-वृतांत, आप-बीती, निबंध इत्यादि में लिख रही हैं। इन ब्लॉगों की  श्रेणियाँ भी विवध हैं और सन्दर्भ विषय भी राजनैतिक, सामाजिक, साहित्यिक आदि सभी को समेटे हुए हैं। 












अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका में महिलाओं की रही सशक्त भागीदारी

21 वीं सदी नारी-सशक्तिकरण की है, बेटियों की है।  हर क्षेत्र में नारियाँ बुलंदियों को छू रही हैं, नए आयाम गढ़ रही हैं, फिर भला ब्लॉगिंग का क्षेत्र कैसे अछूता रह जाता।  आज एक चौथाई से ज्यादा हिंदी ब्लॉग महिलाओं द्वारा संचालित हैं।  वर्चुअल लाइफ में ये एक-दूसरे से रूबरू होती रहती हैं, पर वास्तविक जीवन में कभी-कभार।  हम एक दूसरे के विचारों, भावनाओं से तो रूबरू हुए हैं, पर वास्तविक जीवन में यदा-कदा ही।  

ऐसे में श्री लंका में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर्स सम्मेलन ने  महिला ब्लॉगर्स को एक साथ इकट्ठा होने का भरपूर मौका दिया। भारत के विभिन्न प्रांतों से, विभिन्न कार्य-क्षेत्रों से, विभिन्न आयु-वर्ग से आई महिला ब्लॉगर्स-साहित्यकार-पत्रकार की अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्रीलंका में सशक्त भागीदारी रही। इनमें अकेले भारत से 13 महिला ब्लॉगर्स ने अपनी भागीदारी दर्ज कराई। 

 सही कहें, तो यह  तीन पीढ़ियों का संगम भी था।  नन्ही अपूर्वा, राष्ट्रीय बाल पुरस्कार विजेता नन्ही ब्लॉगर अक्षिता (पाखी), अदिति से लेकर दादी-नानी बन चुकी महिला ब्लॉगर्स का अद्भुत सम्मिलन और स्नेहिल पल। इस अवसर पर डॉ अर्चना श्रीवास्तव, (प्राचार्य, स्नातकोत्तर महाविद्यालय, चंदौली), सुश्री सर्जना शर्मा, (वरिष्ठ पत्रकार और सोशल मीडिया एक्टिविस्ट, नई दिल्ली), डॉ अनीता श्रीवास्तव (संपादक रेवान्त पत्रिका, लखनऊ), सुश्री आकांक्षा यादव (चर्चित लेखिका एवं ब्लॉगर, जोधपुर, राजस्थान), डॉ उर्मिला शुक्ल (वरिष्ठ लेखिका और ब्लॉगर रायपुर, छतीसगढ), सुश्री सुनीता प्रेम यादव ( लेखिका, अनुवादक और ब्लॉगर, औरंगाबाद, महाराष्ट्र), श्रीमती शुभदा पाण्डेय ( वरिष्ठ साहित्यकार, असम),  सुश्री माला चौबे (परिकल्पना, लखनऊ), सुश्री अल्पना देशपांडे (व्याख्याता एवं ब्लॉगर, रायपुर), सुश्री कुसुम वर्मा (लोकगायिका) इत्यादि की भागीदारी रही। 

बच्चियों और महिलाओं  ने जहाँ तमाम सम्मान हासिल किये, वहीं विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेकर शमाँ बाँधा।  बच्चों, महिलाओं और अन्य सामाजिक व ज्वलंत  मुद्दों पर अनौपचारिक वार्ताओं का क्रम भी चलता रहा।  

ऐसे ही तमाम पलों के गवाह ये चित्र, जो अभी भी जीवंत हैं।























अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्रीलंका में 25 मई, 2015 को ''हिन्दी ब्लॉग की समृद्धि में महिलाओं का योगदान'' विषय पर व्याख्यान देती हुईं चर्चित लेखिका एवं ब्लॉगर सुश्री आकांक्षा यादव। इस अवसर पर डॉ अर्चना श्रीवास्तव, (प्राचार्य, स्नातकोत्तर महाविद्यालय, चंदौली), डॉ अनीता श्रीवास्तव (संपादक रेवान्त पत्रिका, लखनऊ), डॉ उर्मिला शुक्ल (वरिष्ठ लेखिका और ब्लॉगर रायपुर, छतीसगढ) और सुनीता प्रेम यादव ( लेखिका, अनुवादक और ब्लॉगर, औरंगाबाद, महाराष्ट्र) ने भी अपने विचार व्यक्त किये !!










यह सु-अवसर उपलब्ध करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन के संयोजक श्री रवीन्द्र प्रभात जी का हार्दिक आभार।  इन अधिकतर तस्वीरों को कैमरे में कैद किया हमारे जीवन-साथी श्री कृष्ण कुमार यादव जी  (वरिष्ठ ब्लॉगर एवं साहित्यकार, निदेशक डाक सेवाएँ, राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर) ने। 



अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका में 'परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान' से सम्मानित होतीं चर्चित ब्लॉगर सुश्री आकांक्षा यादव।

(चित्र में : डॉन सोमरथ्न विथाना, वरिष्ठ नाट्यकर्मी, श्रीलंका, श्री कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवाएँ, राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर, श्री नकुल दूबे, पूर्व नगर विकास मंत्री, उत्तरप्रदेश सरकार, डॉ सुनील कुलकर्णी, हिन्दी विभागाध्यक्ष, उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय जलगांव एवं श्री रवीन्द्र प्रभात, संयोजक- अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन।)
 



अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका में 'परिकल्पना कनिष्ठ सार्क ब्लॉगर सम्मान' से सम्मानित होतीं राष्ट्रीय बाल पुरस्कार विजेता नन्ही ब्लॉगर अक्षिता (पाखी).



आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर : http://shabdshikhar.blogspot.in/
https://www.facebook.com/AkankshaYadav1982

गुरुवार, 4 जून 2015

पहली ट्रांसजेंडर प्रिंसिपल बनकर मानोबी रचेंगी इतिहास

हौसला हो तो सब कुछ हासिल किया जा सकता है, बस जरूरत अपनी इच्छा शक्ति को मजबूत रखकर संघर्ष करने की है। पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर वूमेंस कॉलेज में एसोशियट प्रोफ़ेसर मानोबी बंद्योपाध्याय एक नया इतिहास रचने को तैयार हैं।  भारत में पहली बार किसी ट्रांसजेंडर को प्रिंसिपल बनाया जा रहा है। 9 जून को पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में एक वुमन्स कॉलेज में प्रिंसिपिल का चार्ज संभालने जा रहीं मानबी बनर्जी ने इसे लंबी लड़ाई के बाद मिली जीत करार दिया है।  मानबी फिलहाल विवेकानंद सतोवार्षिकी महाविद्यालय में बांग्ला की एसोसिएट प्रोफेसर हैं। शायद भारत ही नहीं, विश्व में यह पहला मौका होगा जब किसी ट्रांसजेंडर को कॉलेज के प्रिंसिपल की जिम्मेदारी दी जा रही है। गौरतलब है कि  अप्रैल, 2014  में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को तीसरे जेंडर के रूप में मान्यता दी थी। एक आंकड़े के मुताबिक, भारत में 20 लाख से ज्यादा ट्रांसजेंडर हैं।

सोमनाथ से मानबी 
मानबी बनर्जी का पहले नाम सोमनाथ था। उनकी दो बहनें थीं और घर में केवल वह ही लड़के थे। एक इंटरव्यू में मानबी कहा था, ''बचपन में ही मुझे खुद में लड़की होने का अहसास हुआ। लेकिन मेरे पिता यह पसंद नहीं करते थे। मैं पढ़ने के साथ ही डांसिंग क्लास जाना पसंद करती थी। मेरे पिता हमेशा मुझे ताना मारा करते थे। हालांकि, मेरी बहनें हमेशा मेरे साथ रहती थीं। जैसे-जैसे मैं बड़ी होती गई, यह महसूस हुआ कि मुझे लड़कियों के मुकाबले लड़के अच्छे लगते हैं। जब कोई लड़का मुझे छूता था तो कुछ अलग फीलिंग होती थी, लेकिन मैं अपनी इच्छा किसी से कह नहीं पाती। जब मैं स्कूल में थी तो खुद साइकेट्रिस्ट के पास गई, लेकिन मेरे अंदर कोई बदलाव नहीं आया। डॉक्टर मुझे कहते थे कि मैं भूल जाऊं कि लड़की हूं। कुछ डॉक्टरों ने तो यहां तक कह दिया था कि यदि मैंने लड़की होने का अहसास नहीं छोड़ा तो आत्महत्या तक करनी पड़ सकती है। वे मुझे नींद की दवाइयां देते थे, लेकिन मैं उन्हें फेंक देती थी। मेरा जीवन इसी तरह चलता रहा। घर में मैं लड़कियों की तरह रहती थी, लेकिन जब घर से बाहर निकलती थी तो परिवार वालों के डर से मुझे ट्राउजर और शर्ट पहनना पड़ता था। मर्दों जैसा व्यवहार करना पड़ता था। यह मेरे लिए बहुत पीड़ा का वक्त था, लेकिन मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। इस सबके बावजूद मैंने कभी पढ़ाई नहीं छोड़ी। होमो होने के कारण मुझे स्कूल और कॉलेज में ताने मारे जाते थे, लेकिन मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था।

2003 में ऑपरेशन द्वारा बन गई पूरी महिला
मानबी कहती हैं, "2003-2004 में मैंने हिम्मत जुटाई और सेक्स चेंज ऑपरेशन कराने का फैसला लिया। इस दौरान मुझे कई ऑपरेशन कराने पड़े। पांच लाख रुपए में मैंने यह ऑपरेशन कराया। सर्जरी के बाद मैं पूरी तरह से स्वतंत्र हो गई। अब मैं जो चाहती हूं, पहनती हूं। आराम से साड़ी पहनती हूं। ऑपरेशन के तुरंत बाद मैंने अपना नाम सोमनाथ से मानबी रख लिया, जिसका बांग्ला में मतलब महिला होता है।" मानबी नाम चुनने के पीछे भी वे तर्क देती हैं, "इसका अर्थ है कि हम सभी मनुष्य हैं. मनुष्य केवल पुरुष नहीं होता...बंगाली में मानबी का मतलब मानवता से है, इसलिए मैंने ये नाम चुना। "

साहित्यिक-सांस्कृतिक  अभिरुचि की हैं मानबी
मानबी साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से भी जुडी हुई हैं। उनका  एक ग्रुप थिएटर है जिसमें वे अभिनय करती हैं।  वे  स्क्रिप्ट भी लिखती हैं। शास्त्रीय नृत्य में  पारंगत मानबी ने अपने जीवन के अनुभवों पर उपन्यास भी लिखा है। एंडलेस बॉन्डेज (Endless Bondage)। यह बेस्टसेलर रहा। 1995 में मानबी ने ट्रांसजेंडर्स के लिए पहली मैगजीन 'ओब-मानब' (उप-मानव) निकाली। मैगजीन भले ही नहीं बिकती हो, लेकिन इसका प्रकाशन आज भी होता है। उनका मानना है कि अध्यापन, नाटक, अभिनय लेखन सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, और  ये सब हिम्मत औऱ रस देते हैं। 

पहली ट्रांसजेंडर कॉलेज प्रिंसिपल बनने के बाद आप मानबी चाहती हैं  कि वे  शिक्षा को ज़्यादा से ज़्यादा ट्रांसजेंडर लोगों तक पहुंचाएं  क्योंकि इस अधिकार से वो अक्सर वंचित रह जाते हैं और शिक्षा ही उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने की अहम कड़ी है। 

सोमवार, 1 जून 2015

Blogger Akanksha Yadav bags Parikalpna SAARC Summit Award in International conference at Sri Lanka

Famous blogger-writer Akanksha Yadav has won laurels by bagging the ‘Parikalpana SAARC Summit Award’ for  2015 during the Fifth International blogger’s conference held in  Sri Lanka on 25th May, 2015.  She was given Rs. 21000/- cash prize along with a commendation certificate. The Award was given to her by Sri Lanka's senior Dramatist Mr. Don Somrathne Withana and  former Uttar pradesh Cabinet Minister Mr. Nakul Dubey. Akanksha Yadav is wife of Mr. Krishna Kumar Yadav, Director Postal Services,( who himself is a famous Hindi blogger and litterateur.

Organizer of the ‘International Bloggers Conference’ Mr. Ravindra Prabhat said that Akanksha Yadav started her blogging career in 2008, and has been since operating more than 10 blogs on various social issues. She has motivated a number of people to enter the field of blogging and gave blogging new dimensions through her literary creativity. Her blog ‘Shabd Shikhar’ (http://shabdshikhar.blogspot.in/) is counted among one of the famous blogs in Hindi. "Akanksha is a leading women blogger with special interest in women, child and social issues, women empowerment reflects in her writings. These blogs have been viewed by more than million people  from more than 100 countries across the world." 

 Akanksha Yadav have been awarded earlier also with a number of reputed awards at national and international levels. The awards include ‘Awadh Samman’ by Chief Minister of Uttar Pradesh Mr. Akhilesh Yadav, ‘Best blogger couple of the decade’ award in the tenth year of Hindi blogging, ‘Parikalpana blog vibhusan award’ in Nepal during the International Bloggers Conference. Other than these she has been also awarded with Honorary degree of Doctorate (Vidyavachaspati) by Vikramshila Hindi Vidyapeeth, Bhagalpur, Bihar, ‘Dr. Ambedkar Fellowship National Award’ and ‘Veerangana Savitri Bai Fule fellowship award’ by Bhartiya Dalit Sahitya Academy,  ‘Bharti Jyoti’ award by Rastriya Rajbhasa Peeth, Allahabad, ‘Hindi Bhasha Bhusan Award’ by Sahitya Mandal, Srinathdwara, Rajasthan, ‘Manohra Devi Memorial Award’ by Nirala Smriti Sansthan.

"There are several women activists in the country who are indirectly working for the upliftment of women by helping them get empowered. the award will act as a moral booster for such women." said Akanksha. 

She added, "  I will continue to highlight women and child related issues and mobilise people across the globe to work for the cause."








अन्तर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में आकांक्षा यादव “परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान“ से सम्मानित

अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, कोलोम्बो-श्री लंका में  चर्चित ब्लॉगर-लेखिका आकांक्षा यादव को वर्ष 2015 के लिए सार्क देशों में दिए जाने वाले शीर्ष सम्मान “परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान“ से सम्मानित किया गया। 25 मई 2015 को  आयोजित इस पंचम अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में आकांक्षा यादव को श्रीलंका के वरिष्ठ नाट्यकर्मी डॉन सोमरथ्न विथाना एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री  श्री नकुल दूबे द्वारा अंगवस्त्र, सम्मान पत्र, प्रतीक चिन्ह और 21000/- की धनराशि सम्मान स्वरुप  प्रदान की गई । इस अवसर पर ब्लॉगिंग और सोशल मीडिया में महिलाओं की भूमिका पर आकांक्षा यादव ने प्रभावी व्याख्यान भी दिया। आकांक्षा यादव राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर के  निदेशक डाक सेवाएं  श्री कृष्ण कुमार यादव की पत्नी हैं, जो की स्वयं चर्चित ब्लॉगर और साहित्यकार हैं। उक्त जानकारी अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर्स कांफ्रेंस के संयोजक  रवीन्द्र प्रभात ने दी।

       संयोजक  रवीन्द्र प्रभात ने बताया कि आकांक्षा यादव  ने वर्ष 2008 में ब्लाॅग जगत में कदम रखा और विभिन्न विषयों पर आधारित दसियों ब्लाॅग का संचालन-सम्पादन करके कई लोगों को ब्लाॅगिंग की तरफ प्रवृत्त किया और अपनी साहित्यिक रचनाधर्मिता के साथ-साथ ब्लाॅगिंग को भी नये आयाम दिये। “शब्द-शिखर“ (http://shabdshikhar.blogspot.in) इनका प्रमुख ब्लॉग है, जो कि हिंदी के लोकप्रिय ब्लॉगों में गिना जाता है।  नारी विमर्श, बाल विमर्श एवं सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रुचि रखने वाली आकांक्षा यादव अग्रणी महिला ब्लॉगर हैं और इनकी रचनाओं में नारी-सशक्तीकरण बखूबी झलकता है। इनके ब्लॉग को अब तक लाखों लोगों ने पढा है और करीब सौ ज्यादा देशों में इन्हें देखा-पढा जाता है। 

         गौरतलब है कि आकांक्षा यादव को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इससे पूर्व भी ब्लॉगिंग हेतु तमाम प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। इनमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा  “अवध सम्मान“, हिंदी ब्लॉगिंग के दशक वर्ष में  “दशक के श्रेष्ठ ब्लॉगर दम्पति“ का सम्मान, नेपाल में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय ब्लाॅगर सम्मेलन में “परिकल्पना  ब्लॉग विभूषण सम्मान“ से सम्मानित किया जा चुका है।  इसके अलावा विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डाॅक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘डाॅ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘ व ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”, निराला स्मृति संस्थान, रायबरेली द्वारा मनोहरादेवी स्मृति सम्मान सहित विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु दर्जनाधिक सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हैं ।

आकांक्षा को ‘परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान'
(साभार :  हिन्दुस्तान, जौनपुर ,31  मई 2015) 

जौनपुर की ब्लॉगर लेखिका आकांक्षा को सार्क शिखर सम्मान  
(साभार :  राष्ट्रीय सहारा, जौनपुर ,31  मई 2015) 


जौनपुर की ब्लॉगर लेखिका को मिला शिखर सम्मान 
(साभार :  जनसंदेश टाइम्स, जौनपुर , 31  मई 2015) 


आकांक्षा को मिला सार्क शिखर सम्मान 
(साभार : दैनिक तरुण राजस्थानजोधपुर,  31 मई 2015)
आकांक्षा को ब्लॉगिंग के लिए मिला परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान'
(साभार  :  दैनिक प्रतिनिधि, जोधपुर, 31 मई 2015)

जोधपुर की लेखिका आकांक्षा को मिला सार्क शिखर सम्मान 
(साभार : नगर प्रभा, जोधपुर31 मई 2015)


लेखिका आकांक्षा को मिला सार्क शिखर सम्मान 
(साभार : पंजाब केसरी, राजस्थान 31 मई 2015)

ब्लॉगर आकांक्षा को सार्क सम्मान 

(साभार : राजस्थान पत्रिका, जोधपुर, 11 मई 2015)


 आकांक्षा यादव शीर्ष “परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान“  से सम्मानित 
(साभार :  जनसंदेश टाइम्स, इलाहाबाद, 31  मई 2015) 


 आकांक्षा को मिला ब्लॉगर सम्मान 
(साभार : हिंदुस्तान, गाजीपुर, 2 जून  2015)


ब्लॉगर आकांक्षा को परिकल्पना सार्क शिखर  सम्मान 

(साभार : दैनिक जागरण, गाजीपुर, 2 जून  2015)