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रविवार, 31 मई 2015

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पहली बार महिला कुलपति : 800 साल लगे महिलाओं को यहाँ पहुँचने में

महिलाएं सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अपने हक़ और भागीदारी के लिए लड़ रही हैं। अभी भी कई ऐसे संस्थान हैं, जहाँ महिलाएं शीर्ष पदों तक अपनी पहुँच नहीं बना सकी हैं। इन्हीं में से एक लंदन स्थित प्रतिष्ठित ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में पहली बार कोई महिला कुलपति बनेगी । प्रोफेसर लुइस रिचर्डसन को ऑक्सफोर्ड के अगले वाइस चांसलर के तौर पर नॉमिनेट किया गया है। लुइस इस समय यूनिवर्सिटी ऑफ एन्ड्रूज में बतौर प्रिसिंपल और कुलपति काम कर रही हैं।

ऑक्सफाेर्ड यूनिवर्सिटी के एक हजार साल से भी ज्यादा के इतिहास में प्रोफेसर लुइस रिचर्डसन 297वीं वाइस-चांसलर होंगी। मौजूदा समय में ऑक्सफोर्ड में 11 महिलाएं हेड ऑफ द हाउस हैं। यह पहली बार नहीं है कि उन्हें कोई एेतिहासिक जिम्मेदारी मिली है। 2009 में स्कॉटलैंड की सेंट एंड्रूज यूनिवर्सिटी में जब उन्हें वाइस चांसलर बनाया गया था। यह उपलब्धि हासिल करने वाली वह पहली महिला थीं। यूनिवर्सिटी के 600 साल के इतिहास में एेसा पहली बार हुआ था। साथ ही यह पद पाने वाली वह पहली राेमन कैथोिलक भी थीं। सेंट एंड्रूज में उनके कार्यकाल में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूनिवर्सिटी का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा।

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की पहली महिला वाइस चांसलर बनी लुइस रिचर्डसन की कहानी किसी फिल्म की पटकथा से कम नहीं है। 1958 में अायरलैंड के त्रामोर में जन्मी लुइस के माता-पिता कभी कॉलेज नहीं गए और न ही उनके छह भाई-बहनों में से किसी ने कॉलेज का मुंह देखा। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि जीवन में जो भी कुछ हासिल किया शिक्षा के बल पर। इसलिए चाहती हूं कि सभी को यह मौका मिले। पढ़ाई के दौरान अपना खर्च उठाने के लिए उन्होंने सप्ताह में 6 दिन लाइब्रेरी में काम किया। हफ्ते में चार दिन वे कॉकटेल वेट्रेस के रूप में भी काम करती थीं। इस मेहनत से उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज ऑफ डबलिन से इतिहात विषय में बीए किया और फिर कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पॉलटिकल साइंस में एमए की डिग्री ली। इसके बाद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की। प्रोफेसर रिचर्डसन का अकैडमिक करियर शानदार रहा है। उन्होंने आतंक और सुरक्षा मुद्दों में विशेषज्ञता प्राप्त की है। रिचर्डसन ने अपने नॉमिनेशन के बारे में कहा, ऑक्सफोर्ड दुनिया की सबसे अच्छे विश्वविद्यालयों में से एक है। मैं खुद को बहुत ही खुशनसीब समझती हूं कि मुझे इस संस्थान की जिम्मेदार संभालने का मौका मिला है। मैं दुनिया के टैलंटेड और डेडिकेटेड लोगों के साथ काम करने के लिए उत्साहित हूं।

महिलाओं की भागीदारी को लेकर देखें तो ऑक्सफर्ड का पहला वूमेन कॉलेज 19वीं सदी में बना था और 1920 में महिलाएं यूनिवर्सिटी की फुल टाइम मेंबर बनी थीं। हिल्डा कॉलेज ऑक्सफोर्ड का आखिरी वुमन कॉलेज है। साल 2008 से सभी कॉलेजों में लड़के और लड़कियां साथ पढ़ते हैं।

गौरतलब है कि दुनिया की कई मशहूर हस्तियों और नेताओं ने अपनी पढ़ाई ऑक्सफोर्ड से की है। ब्रिटेन के 26 प्रधानमंत्रियों ने ऑक्सफोर्ड से ही अपनी पढ़ाई की है। जिनमें वर्तमान प्रधानमंत्री डेविड कैमरन भी शामिल हैं। भारतीयों को इस मशहूर यूनिवर्सिटी में 1871 से एंट्री मिलनी शुरू हुई थी। भारत के कई जाने-माने लोगों ने भी यहां से पढ़ाई की है। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और मनमोहन सिंह भी हैं। कई भारतीयों को यहां एकेडमिक  पद भी मिले। जैसे कि भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन, नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन और भारत रत्न विजेता वैज्ञानिक सी.एन. राव। 

शुक्रवार, 29 मई 2015

अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका में आकांक्षा यादव को 'परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान'

सम्मानों की कड़ी में अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका में हमें 'परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान' से सम्मानित किया गया। 25 मई 2015 को कोणकोर्ड ग्रैंड होटल, कोलम्बो में आयोजित पंचम अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में अंगवस्त्र, सम्मान पत्र, प्रतीक चिन्ह और 21000/- की धनराशि के साथ इसे हमने ससम्मान ग्रहण किया । यह सब आप सभी की हार्दिक शुभकामनाओं, स्नेह और प्रोत्साहन का परिणाम है !!


(चित्र में : डॉन सोमरथ्न विथाना, वरिष्ठ नाट्यकर्मी, श्रीलंका,  श्री कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवाएँ, राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर, श्री नकुल दूबे, पूर्व नगर विकास मंत्री, उत्तरप्रदेश सरकार, डॉ सुनील कुलकर्णी,  हिन्दी विभागाध्यक्ष, उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय जलगांव एवं श्री रवीन्द्र प्रभात, संयोजक- अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन ।)


 (अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका में  'परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान-2015' से सम्मानित होतीं आकांक्षा यादव)


(सम्मान पत्र :  'परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान-2015') 


(प्रतीक चिन्ह :  'परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान-2015' )

सोमवार, 18 मई 2015

जहाँ सोच, वहाँ शौचालय

वक़्त के साथ समाज में काफी कुछ परिवर्तित हो रहा है।  लोगों के रहन-सहन से लेकर सोचने के तरीके तक। जबसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ्ता अभियान की बात की है, इसको अपने भाषणों में सामाजिक सरोकारों से जोड़ा है, लोगों में भी एक नई चेतना का संचार हुआ है। अपने देश में यह किसी से नहीं छुपा है कि आज भी गाँवों में अधिकतर महिलाएं और पुरुष दोनों ही खुले में शौच जाते हैं। जो लोग अपनी बहू-बेटियों को चौखट लांघने की इजाजत नहीं देते, वहाँ भी महिलाएं सुबह-सुबह सड़कों के किनारे और खेतों में शौच से निवृत्त होती दिखाई देती हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 53 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं। ग्रामीण महिलाएं शाम होने का इंतजार करती हैं और अंधेरा होने पर सड़क किनारे शौच करने जाती हैं। किसी गाड़ी की रोशनी पड़ते ही कुछ देर के लिए खड़ी हो जाती हैं। यह इक्कीसवीं सदी के भारत की एक शर्मसार करने वाली हकीकत है।

शौचालय एक ऐसा मामला है, जिसमें कई बार तो तथाकथित सभ्य समाज के लोग बात करना गंवारा भी नहीं समझते। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रहते हुए जयराम रमेश ने जब  भारत में मंदिर और टॉयलेट दोनों की एक साथ चर्चा की तो उनके बयां पर कोहराम मच गया था। उन्होंने लोगों के बीच सफाई के लिए जागरूकता बढ़ाने को लेकर निर्मल भारत यात्रा को हरी झंडी दिखाते हुए कहा था कि हमारे देश में मंदिर से ज्यादा टॉयलेट महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि 64 फीसद भारतीय खुले में शौच करते हैं। अब यह साबित हो चुका है कि खुले में शौच भारत में कुपोषण की बड़ी वजह है। उन्होंने घोषणा की थी कि पिछले पांच वर्षो में ग्रामीण स्वच्छता पर सरकार ने 45 हजार करोड़ खर्च किए हैं और अगले पांच वर्षो में इस पर 1.08 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। 

शौचालय या टॉयलेट से सबसे ज्यादा प्रभावित तो बेटियाँ होती हैं।  ऐसे में तमाम ऐसी घटनाएँ अब खुलकर सामने आ रही हैं जहाँ घर में शौचालय न होने के कारण वे अपने पतियों को छोड़ गईं या भरे मंडप में विवाह से ही मना कर दिया। महाराष्ट्र में 30 साल की संगीता ने ससुराल में टॉयलेट बनवाने के लिए अपना मंगलसूत्र बेच दिया था, बाद में संगीता को राज्य की ग्रामीण विकास मंत्री पंकजा मुंडे ने सम्मानित किया और एक सोने का हार गिफ्ट में दिया था। 21 वीं सदी की ये बेटियाँ शिक्षा की बदौलत अब जागरूक हो रही हैं और नए आयाम  भी स्थापित कर रही हैं।


हाल ही में अकोला, महाराष्ट्र की एक बेटी चैताली को पता चला कि उसके नए घर (ससुराल) में कोई टॉयलेट नहीं हैं तो उसने अपनी शादी के दौरान घरवालों के सामने गहने और सामान की बजाय टॉयलेट की मांग करके उनको हक्काबक्का कर दिया।  बेटी की इस मांग को सुनकर सब हैरान रह गए।  खैर, पिता ने बेटी की बात मान ली और 18 हजार की लागत से एक रेडीमेट टॉयलेट बनवाकर बेटी को गिफ्ट कर दिया। शायद यह देश का पहला मामला है, जब लड़की के परिवालवालों ने गहने और अन्य गृहस्थी के सामान के बदले शादी में ऐसा गिफ्ट दिया है। यह पहल यहीं नहीं ख़त्म हुई, रेडीमेड टॉयलेट बनाने वाले अरविंद देथे को जब पता चला कि चैताली के पिता इसे शादी में गिफ्ट कर रहे हैं तो उन्होंने इसे सब्सिडी रेट पर देने का फैसला किया। अरविंद ने कहा कि चैताली की इस पहल से देश की उन लड़कियों को फायदा मिलेगा, जिनके ससुराल में टॉयलेट नहीं है। वहीं, चैताली के पति देवेंद्र ने घर में स्थाई टॉयलेट बनवाने की बात कही है। इस बीच भारत में स्वच्छता के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था सुलभ इंटरनेशनल को चैताली की स्थिति के बारे में जानकारी मिली और उसने दुल्हन को 10 लाख रुपये का नकद पुरस्कार देने की घोषणा की। 

वाकई आज भी अपने देश में तमाम रूढ़ियाँ और परम्पराएँ, प्रगतिशीलता के आड़े आती हैं। अभिनेत्री विद्या बालन का टीवी पर दिखने वाला विज्ञापन ''जहाँ सोच, वहाँ शौचालय'' अभी भी हमारे मर्म को छूता है। मोदी सरकार आने के बाद तमाम कार्पोरेट कम्पनियों ने अपनी सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी के तहत शौचालय बनवाने की घोषणा की है। पर आज जरूरत सिर्फ शौचालय बनवाने की ही नहीं, वहाँ समुचित पानी पहुँचाने और उसे भी स्वच्छ रखने की है, ताकि हम स्वच्छ भारत में स्वच्छ साँस ले सकें। 

- आकांक्षा यादव @ www.shabdshikhar.blogspot.com/  

आकांक्षा यादव के ब्लॉग 'शब्द-शिखर' को चुना गया हिन्दी का सबसे लोकप्रिय ब्लॉग

हिंदी की चर्चित ब्लॉगर आकांक्षा यादव के ब्लॉग 'शब्द-शिखर'  (www.shabdshikhar.blogspot.in/) को वर्ष 2015 के लिए हिन्दी का सबसे लोकप्रिय ब्लॉग चुना गया है।  डॉयचे वेले की बॉब्स - बेस्ट ऑफ एक्टिविज्म - प्रतियोगिता में इंटरनेट यूजरों ने 'पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड' श्रेणी में इस ब्लॉग  को हिंदी के सबसे लोकप्रिय ब्लॉग के रूप में चुना है। हिंदी सहित 14 भाषाओं में पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड के तहत एक एक सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग चुना गया है, जिसमे कुल मिला कर करीब 30,000 वोट डाले गए। ज्यूरी ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि, ''आकांक्षा यादव साहित्य, लेखन और ब्लॉगिंग के क्षेत्र में सक्रिय हैं।  उन्हें हिन्दी में ब्लॉग लिखने वाली शुरुआती महिलाओं में गिना जाता है।  आकांक्षा महिला अधिकारों पर लिखना पसंद करती हैं।  अपने ब्लॉग में वह अपने निजी अनुभव और कविताएं भी शामिल करती हैं।''  वर्ष 2008 से ब्लॉगिंग में सक्रिय आकांक्षा यादव  राजस्थान पश्चिम क्षेत्र, जोधपुर के निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव की पत्नी हैं, जो कि स्वयं चर्चित हिंदी ब्लॉगर और साहित्यकार हैं। इनके ब्लॉग को अब तक लाखों लोगों ने पढा है और करीब सौ ज्यादा देशों में इन्हें देखा-पढा जाता है। 

 गौरतलब है कि द बॉब्स – बेस्ट ऑफ आनलाइन एक्टिविज्म के जरिए डॉयचे वेले 2004 से एक ऐसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता आयोजित कर रहा है जो ऐसे ब्लॉगरों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को सम्मानित करती है जो इंटरनेट से जुड़ कर अभिव्यक्ति की आजादी और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए काम कर रहे हैं। प्रतियोगिता के लिए 14 सदस्यों वाली अंतरराष्ट्रीय जूरी ने विभिन्न वर्गों में 112 वेबसाइटों को नामांकित किया। इस साल 4,800 से ज्यादा वेबसाइटों और ऑनलाइन प्रोजेक्टों के सुझाव बॉब्स की टीम तक पहुंचे। विजेताओं को 23 जून को जर्मनी के बॉन शहर में होने वाले ग्लोबल मीडिया फोरम के दौरान पुरस्कृत किया जाएगा। 

आकांक्षा यादव को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इससे पूर्व भी ब्लॉगिंग हेतु तमाम प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। इनमें   ''अवध सम्मान“, हिंदी ब्लॉगिंग के दशक वर्ष में  “दशक के श्रेष्ठ ब्लॉगर दम्पति“ का सम्मान, नेपाल में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय ब्लाॅगर सम्मेलन में “परिकल्पना  ब्लॉग विभूषण सम्मान“ से सम्मानित किया जा चुका है।  इसके अलावा विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डाॅक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘डाॅ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘ व ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”, निराला स्मृति संस्थान, रायबरेली द्वारा मनोहरादेवी स्मृति सम्मान सहित विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु दर्जनाधिक सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हैं ।