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शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

अहसास तुम्हारा...


एक अहसास
किसी के साथ का
किसी के प्यार का
अपनेपन का

एक अनकहा विश्वास
जो कराता है अहसास
तुम्हारे साथ का
हर पल, हर क्षण

इस क्षणिक जीवन की
क्षणभंगुरता को झुठलाता
ये अहसास
शब्दों से परे
भावनाओं के आगोश में
प्रतिपल लाता है
तुम्हें नजदीक मेरे

लौकिकता की
सीमा से परे
अलौकिक है
अहसास तुम्हारा !!


तुम मिले तो जिंदगी में रंग भर गए।
तुम मिले तो जिंदगी के संग हो लिए।
 




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रविवार, 9 फ़रवरी 2014

रिश्ता जन्मों-जन्मों का : वसंत, वेलेंटाइन और 'वर्ल्ड मैरिज डे'

हर दिन अपने में खास होता है।  रिश्तों को सेलिब्रेट करने का  चाहिए। यह सही है कि किसी रिश्ते या भावना को एक दिन विशेष में नहीं बाँधा जा सकता, पर किसी दिन विशेष पर मौका मिले तो सेलिब्रेट करने में हर्ज भी क्या ? जीवन की इस आपाधापी और दौड़भाग में रिश्तों की अहमियत किसी सी नहीं छुपी है।  ऐसे में आज एक खूबसूरत रिश्ते को सेलिब्रेट करने का एक और सु-अवसर है । आज 9 फरवरी को  'वर्ल्ड मैरिज डे' है । 'हैपिली मैरिड' का कॉन्सेप्ट भी इसी थीम पर टिका है, जहां आप दूसरे को इस हद तक स्वीकार करें कि उसकी कमियों के साथ चलने में  कोई समस्या न हो। तभी तो कहते हैं, ये रिश्ता जन्मों-जन्मों का। तेरा साथ है तो, फिर क्या कमी ......!  

फरवरी के हर द्वितीय रविवार को 'वर्ल्ड मैरिज डे' मनाया जाता है। यह भी अजीब संयोग है कि यह समय होता है वसंत की रुमानियत का, जिसे पश्चिमी देशों में वेलेंटाइन उत्सव के रूप में मनाया जाता  है। इस दौरान खूब शादियां होती हैं, मुहूर्त का भी कोई झंझट नहीं। यूँ ही नहीं कहा गया है कि यौवन हमारे जीवन का वसंत है तो वसंत इस सृष्टि का यौवन है। चरक संहिता में कहा गया है कि वसंत के दौरान कामिनी और कानन में अपने आप यौवन फूट पड़ता है। यही कारण है कि वसंत पंचमी का उत्सव मदनोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है और तदनुसार  वसंत के सहचर कामदेव तथा रति की भी पूजा होती है। इस अवसर पर ब्रजभूमि में भगवान्‌ श्रीकृष्ण और राधा के आनंद-विनोद का उत्सव मुख्य रूप से मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण इस उत्सव के अधिदेवता हैं।  'वर्ल्ड मैरिज डे' का कांसेप्ट भले ही पाश्चात्य देशों से आया है, पर वसंत पर्व में इसकी परंपरा अपने भारत देश में बहुत पुरानी रही है। 

वर्ल्ड मैरिज डे को पति-पत्नी के मधुर सम्बन्धों के लिए मनाया जाता है। विवाह का रिश्ता हमारे समाज का सशक्त आधार है। इसकी थीम है 'लव वन-अनदर' यानी एक-दूसरे की कमियों को स्वीकार करके अपने जीवन साथी  को प्यार करना। समाज में तमाम बदलावों के साथ रिश्तों की कसौटियां भी परिवर्तित हुई हैं। जाहिर है कि विवाह को भी हम इससे बचाकर नहीं चल सकते। तनाव, कमिटमेंट से घबराहट, करियर में आगे बढ़ने की चाह जैसे तमाम कारण हैं, जो लोगों को शादी में व्यवस्थित होने नहीं दे रहे हैं।  ऐसे में 'वर्ल्ड मैरिज डे' का कॉन्सेप्ट अपनी एक विशिष्ट  जगह रखता है, ताकि लोग प्यार की अगली कड़ी यानी शादी को भी सफल बना सकें। 

शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

'वसंत' की रुमानियत के बीच 'वेलेण्टाइन'

वसंत का मौसम आ गया है। मौसम में रूमानियत छाने लगी है। हर कोई चाहता है कि अपने प्यार के इजहार के लिए उसे अगले वसंत का इंतजार न करना पड़े। सारी तैयारियां आरम्भ हो गई हैं। प्यार में खलल डालने वाले भी डंडा लेकर तैयार बैठे हैं। भारतीय संस्कृति में ऋतुराज वसंत की अपनी महिमा है। वेदों में भी प्रेम की महिमा गाई गई है। यह अलग बात है कि हम जब तक किसी चीज पर पश्चिमी सभ्यता का ओढ़ावा नहीं ओढ़ा लेते, उसे मानने को तैयार ही नहीं होते। ‘योग‘ की महिमा हमने तभी जानी जब वह ‘योगा‘ होकर आयातित हुआ। ऋतुराज वसंत और इनकी मादकता की महिमा हमने तभी जानी जब वह ‘वेलेण्टाइन‘ के पंखों पर सवार होकर अपनी खुमारी फैलाने लगे। 

प्रेम एक बेहद मासूम अभिव्यक्ति है। मशहूर दार्शनिक ख़लील जिब्रान एक जगह लिखते हैं-‘‘जब पहली बार प्रेम ने अपनी जादुई किरणों से मेरी आंखें खोली थीं और अपनी जोशीली अंगुलियों से मेरी रूह को छुआ था, तब दिन सपनों की तरह और रातें विवाह के उत्सव की तरह बीतीं।‘‘ अथर्ववेद में समाहित प्रेम गीत भला किसको न बांध पायेंगे। जो लोग प्रेम को पश्चिमी चश्मे से देखने का प्रयास करते हैं, वे इन प्रेम गीतों को महसूस करें और फिर सोचें कि भारतीय प्रेम और पाश्चात्य प्रेम का फर्क क्या है? 

फिलहाल वेलेण्टाइन-डे का खुमार युवाओं पर चढ़कर बोल रहा है। कोई इसी दिन पण्डित से कहकर अपना विवाह-मुहूर्त निकलवा रहा है तो कोई इसे अपने जीवन का यादगार लम्हा बनाने का दूसरा बहाना ढूंढ रहा है। एक तरफ नैतिकता की झंडाबरदार सेनायें वेलेण्टाइन-डे का विरोध करने और इसी बहाने चर्चा में आने का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं-‘करोगे डेटिंग तो करायेंगे वेडिंग।‘ यही नहीं इस सेना के लोग अपने साथ पण्डितों को लेकर भी चलेंगे, जिनके पास ‘मंगलसूत्र‘ और ‘हल्दी‘ होगी। तो अब वेलेण्टाइन डे के बहाने पण्डित जी की भी बल्ले-बल्ले है। जब सबकी बल्ले-बल्ले हो तो भला बहुराष्ट्रीय कम्पनियां कैसे पीछे रह सकती हैं। आर्थिक मंदी के इस दौर में ‘प्रेम‘ रूपी बाजार को भुनाने के लिए उन्होंने ‘वेलेण्टाइन-उत्सव‘ को बकायदा हफ्ते भर  तक मनाने की घोषणा कर दी है। हर दिन को अलग-अलग नाम दिया है और उसी अनुरूप लोगों की जेब के अनुरूप गिफ्ट  भी तय कर लिये हैं। यह उत्सव 7  फरवरी को ‘रोज  डे‘ से आरम्भ होकर 14  फरवरी को ‘वैलेण्टाइन डे'  पर खत्म होगा। यह भी अजूबा ही लगता है कि शाश्वत प्रेम को हमने दिनों की चहरदीवारी में कैद कर दिया है। खैर इस वर्ष ज्वैलरी पसंद लड़कियों के लिये बुरी खबर है कि मंहगाई के इस दौर में पिछले वर्षों में शामिल रहे   ‘ज्वैलरी डे‘ और ‘लविंग हार्टस डे‘ को इस बार हटा दिया गया है। वेलेण्टाइन-डे के बहाने वसंत की मदमदाती फिजा में अभी से ‘फगुआ‘ खेलने की तैयारियां आरम्भ हो चुकी हैं।

7  फरवरी - रोज  डे
8  फरवरी - प्रपोज डे
9 फरवरी -  चॉकलेट डे
10  फरवरी - टेडी  डे
11 फरवरी - प्रामिस डे 
12 फरवरी - हग  डे
13 फरवरी - किस  डे
14 फरवरी - वैलेण्टाइन डे

प्रेम कभी दो दिलों की धड़कन सुनता था, पर बाज़ारवाद की अंधी दौड़ ने इन दिलों में अहसास की बजाय गिफ्ट, ग्रीटिंग कार्ड, चाकलेट, फूलों का गुलदस्ता भर दिया और प्यार मासूमियत की जगह हैसियत मापने वाली वस्तु हो गई। ‘प्रेम‘ रूपी बाज़ार को भुनाने के लिए वेलेण्टाइन-डे को बकायदा कई दिनों तक चलने वाले ‘वेलेण्टाइन-उत्सव’ में तब्दील कर दिया गया है और हर दिन को कार्पोरेट जगत से लेकर मॉल कल्चर और होटलों की रंगीनी से लेकर सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स और मीडिया की फ्लैश में चकाचौंध कर दिया जाता है और जब तक प्यार का ख़ुमार उतरता है, करोड़ों के वारे-न्यारे हो चुके होते हैं। टेक्नॉलाजी ने जहाँ प्यार की राहें आसान बनाई, वहीं इस प्रेम की आड़ में डेटिंग और लिव-इन-रिलेशनशिप इतने गड्डमगड्ड हो गए कि प्रेम का ’शरीर’ तो बचा पर उसका ’मन’ भटकने लगा। प्रेम के नाम पर बचा रह गया ‘देह विमर्श’ और फिर एक प्रकार का उबाउपन। काश वसंत के मौसम में प्रेम का वह अहसास लौट आता-



वसंत
वही आदर्श मौसम
और मन में कुछ टूटता सा
अनुभव से जानता हूँ
कि यह वसंत है (रघुवीर सहाय)


मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

'फेसबुक' का दशक

कहते हैं दुनिया में दो तरह के लोग हैं।  एक, वो जो फेसबुक पर हैं और दूसरे, वो जो फेसबुक पर नहीं हैं। यह अतिरंजना  हो सकती है, पर दुनिया भर में फेसबुक ने जितनी तेजी से लोगों को अपना दीवाना और स्टेटस सिम्बल का प्रतीक बनाया है, वह एक शोध का विषय हो सकता है। आखिर यूँ ही इसने अपने मुकाम के दशक वर्ष में प्रवेश नहीं कर लिया है। 

जब से सोशल मीडिया का आरंभ हुआ है, तब से फेसबुक ही दुनिया भर में छाया हुआ है। संदेशों के लेन-देन के और भी विकल्प मौजूद हैं, पर फेसबुक सबका अगुआ बन चुका है। लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने के अलावा, बिछड़े हुए को मिलाने और त्‍वरित संदेश भेजने के अलावा अपने संदेशों के आदान-प्रदान के लिए इसे सबसे सही और जबरदस्‍त माध्‍यम माना जाता है। किसी समालोचक ने ठीक ही लिखा कि फेसबुक हमारे लिए अपनों से जुड़ने, उनसे संवाद करने का एक जरिया है। इस प्रक्रिया में एक मानसिक संतोष है कि जो हमसे दूर हैं, वे बहुत दूर भी नहीं हैं। फेसबुक का न होना इस संतोष से वंचित होना है। 

बकौल हरजिंदर, सीनियर एसोशिएट एडिटर, हिन्दुस्तान फेसबुक पर सक्रिय किसी उत्साही शख्स के दोस्तों की सूची खंगालिए। इसमें उसके परिवार के सदस्य, रिश्तेदार, दफ्तर या कामकाज के सहयोगी और कुछ अड़ोसी-पड़ोसी तो होंगे ही, साथ ही वे लोग भी होंगे, जिनके साथ उसने स्कूल में पढ़ाई की थी, जिनके साथ वह कॉलेज गया था, जिनके साथ गली-मुहल्ले में तरह-तरह के खेल खेले थे, गप्पें लड़ाई थीं, या आवारागर्दी की थी, जिनके साथ वह कई मसलों पर इत्तेफाक रखता है और वे लोग भी, जिनके साथ आगे चलकर कार्य-व्यापार वगैरह में कुछ संभावनाएं बनती हों। एक बार इस सूची को फिर से देखें। इसमें दुनिया भर में रह रहे वे लोग हैं, जो दरअसल उसका अतीत हैं। वे लोग हैं, जो उसके वर्तमान से जुड़े हैं। और वे भी लोग हैं, जिनसे वह भविष्य की कोई उम्मीद बांधता है। यही फेसबुक की ताकत है कि उसमें आप अपने अतीत से लेकर भविष्य तक के तमाम लम्हों को एक साथ जी सकते हैं। बिल्कुल अभी, किसी भी क्षण।  पर जो भी हो फेसबुक यह असल जिंदगी के सोशल नेटवर्क का विकल्प नहीं है, उस सोशल नेटवर्क का, जिसमें पड़ोसी, दोस्त, रिश्तेदार जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे के काम आते थे।

 4 फरवरी 2004 को अमेरिका में मार्क जकरबर्ग द्वारा स्थापित किए गए इस ऑनलाइन संदेशवाहक से आज करोड़ों लोग जुड़े हुए हैं और लगभग हर दिन मीडिया में इससे संबंधित सुर्खियां जरूर रहती हैं। यहां तक कि कई मीडिया संस्‍थान भी खबरों के प्रचार-प्रसार के लिए इसका उपयोग कर रहे हैं। दुनियाभर में फैले अपने 1 . 2 अरब चाहने वालों के बीच सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक अपना दसवां जन्मदिन मना रहा है.  यह अलग बात है कि दस साल के फेसबुक को इस समय अपने युवा इस्तेमालकर्ताओं को अपने साथ जोड़े रखने के लिए विभिन्न प्रकार के नए प्रयोग करने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 

मार्क जुकरबर्ग ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से चार फरवरी 2004 को फेसबुक की शुरुआत की थी. इस साइट का प्रारुप इस प्रकार डिजाइन किया गया था कि यह छात्रों को एक दूसरे से जोड़े और उन्हें आनलाइन अपनी एक पहचान कायम करने में मदद करे. फेसबुक का प्रभाव ऐसा था जिसने दोस्त की नई परिभाषा गढ़ी, यानी फेसबुक पर किसी व्यक्ति का मित्र। इसके जरिए कोई भी व्यक्ति किसी को भी फॉलो कर उसका मित्र बन सकता है। साल 2013 में फेसबुक ने 7.87 अरब डॉलर की कमाई थी, जिसमें 1.5 अरब डॉलर शुद्ध मुनाफा शामिल था।

मई में 30 साल के होने जा रहे जुकरबर्ग ने पिछले सप्ताह सिलिकान वैली में एक औद्योगिक सम्मेलन में कंपनी के दस साल पूरे होने पर विशेष भाषण दिया था. जुकरबर्ग ने कहा था कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि फेसबुक उन्हें दुनिया के सबसे धनी लोगों की पंक्ति में लाकर खड़ा कर देगी.  फेसबुक को अब कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. सोशल नेटवर्किंग साइट पिनट्रेस्ट, ट्विटर और स्नैप चैट जैसी साइटों ने फेसबुक के लिए मुकाबला कड़ा कर दिया है और उसे अपने मूल युवा इस्तेमालकर्ताओं को बनाए रखने के लिए नए नए उपाय सोचने पड़ रहे हैं. आईस्ट्रेटेजीलैब्स की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2011 से जनवरी 2014 के बीच 13 से 17 साल की उम्र के 30 लाख से अधिक उपयोगकर्ता ने अपना अकांउट बंद कर दिया है। यही हाल 18 से 24 साल के बीच के युवाओं का भी रहा है।

फेसबुक की इंडिया चीफ 42 वर्षीया कृतिगा रेड्डी का कहना है कि वर्ष 2014 एफबी इंडिया के लिए अहम होगा. रेड्डी चाहती हैं कि भारतीय कंपनियां फेसबुक को सोशल मीडिया नहीं, बल्कि मास मीडिया प्लैटफॉर्म के रूप में देखें. गौरतलब है कि भारत में एफबी के करीब 9 करोड़ 30 लाख यूजर्स हैं. दिसंबर 2013 तक के आंकड़ों के अनुसार, इनमें से 7 करोड़ 50 लाख यूजर्स मोबाइल के जरिए एफबी पर थे. अमेरिका के बाद भारत इसका दूसरा सबसे बड़ा यूजर बेस है. मोबाइल प्लैटफॉर्म को ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने की एफबी की योजना को देखते हुए लग रहा है कि भारत में इसे सही मंच मिल गया है. चार साल पहले जब रेड्डी ने कंपनी का ज्‍वॉडन किया था उस समय भारत में इसके यूजर 80 लाख थे. भारत में हर महीने एफबी से करीब 20 लाख लोग जुड़ रहे हैं. यह 9 भाषाओं में अपनी सेवा दे रही है. रेड्डी के सामने अगला लक्ष्‍य इसके यूजर बेस को 10 करोड़ तक पहुंचाना है. रेड्डी ने कहा कि मुझे पता है कि अब से 18 महीने बाद मीडिया लैंडस्केप अलग होगा और इस बदलाव को रफ्तार देने में फेसबुक की अहम भूमिका होगी. उन्होंने कहा कि तमाम कंपनियां और ब्रैंड्स इस प्लैटफॉर्म को अपनाएंगे.