आपका समर्थन, हमारी शक्ति

मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

ऐ नव वर्ष के प्रथम प्रभात

नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है,
खुशियों की बस इक चाहत है।

नया जोश, नया उल्लास,
खुशियाँ फैले, करे उजास।

नैतिकता के मूल्य गढ़ें,
अच्छी-अच्छी बातें पढें।

कोई भूखा पेट न सोए,
संपन्नता के बीज बोए।

ऐ नव वर्ष के प्रथम प्रभात,
दो सबको अच्छी सौगात।




शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा आकांक्षा यादव को 'भगवान बुद्ध राष्ट्रीय फेलोशिप सम्मान-2013'

भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने युवा कवयित्री, साहित्यकार एवं अग्रणी महिला  ब्लागर आकांक्षा यादव को दिल्ली में 12-13 दिसम्बर, 2013 को आयोजित 29वें राष्ट्रीय दलित साहित्यकार सम्मेलन में सामाजिक समरसता सम्बन्धी लेखन, विशिष्ट कृतित्व एवं समृद्ध साहित्य-साधना और सामाजिक कार्यों में रचनात्मक योगदान हेतु ‘’भगवान बुद्ध राष्ट्रीय फेलोशिप सम्मान-2013‘‘ से सम्मानित किया। आकांक्षा यादव को इससे पूर्व विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु दर्जनाधिक  सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हैं। 

गौरतलब है कि नारी विमर्श, बाल विमर्श एवं सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रूचि रखने वाली आकांक्षा यादव साहित्य, लेखन, ब्लागिंग व सोशल मीडिया के क्षेत्र में एक लम्बे समय से सक्रिय हैं। देश-विदेश की प्रायः अधिकतर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और इंटरनेट पर वेब पत्रिकाओं व ब्लॉग पर आकांक्षा यादव की विभिन्न विधाओं में रचनाएँ निरंतर प्रकाशित होती रहती है। आकांक्षा यादव की 2 कृतियाँ ”चाँद पर पानी” (बालगीत संग्रह) एवं ”क्रांतियज्ञ: 1857-1947 की गाथा” प्रकाशित हैं।

भारतीय दलित साहित्य अकादमी की स्थापनावर्ष 1984 में बाबू जगजीवन राम द्वारा दलित साहित्य के संवर्धन  और प्रोत्साहन हेतु  की गयी थी। 

साभार:



युवा कवयित्री, साहित्यकार  आकांक्षा यादव  सम्मानित।
(पंजाब केसरी, 22 दिसंबर, 2013 )

आकांक्षा यादव को मिला ‘’भगवान बुद्ध राष्ट्रीय फेलोशिप सम्मान‘‘
(दैनिक जागरण,16  दिसंबर, 2013-वाराणसी संस्करण )


''भगवान बुद्ध राष्ट्रीय फेलोशिप सम्मान-2013'' से नवाजी गई आकांक्षा यादव 
( अमर उजाला, 17  दिसंबर, 2013-वाराणसी संस्करण )


आकांक्षा यादव क़ो मिला भारतीय दलित साहित्य अकादमी का सम्मान।
(जनसंदेश टाइम्स, 16 दिसंबर, 2013-वाराणसी संस्करण )


युवा कवयित्री  आकांक्षा यादव ‘’भगवान बुद्ध राष्ट्रीय फेलोशिप सम्मान‘‘ से सम्मानित।
(दैनिक आज, 16  दिसंबर, 2013-वाराणसी संस्करण )

दलित साहित्य अकादमी ने आकांक्षा यादव क़ो किया सम्मानित 
(अमृत प्रभात, 21 दिसंबर, 2013-इलाहाबाद संस्करण )
आकांक्षा यादव सम्मानित 
(अमर उजाला, 21 दिसंबर, 2013-इलाहाबाद संस्करण )


युवा कवयित्री आकांक्षा यादव को सम्मान 
(दैनिक जागरण, 21 दिसंबर, 2013-इलाहाबाद संस्करण )

आकांक्षा यादव क़ो मिला दलित साहित्य अकादमी  पुरस्कार 
(हिन्दुस्तान, 21 दिसंबर, 2013-इलाहाबाद संस्करण )

आकांक्षा यादव सम्मानित 
(जनसंदेश टाइम्स, 21 दिसंबर, 2013-इलाहाबाद संस्करण )

Bhartiya Dalit Sahitya Akademi felicitates Akanksha Yadav
(Northern India Patrika, 22 Dec. 2013)



Dalit Akademi felicitates blogger Akanksha Yadav
(Times of India, 22 Dec. 2013)




सोमवार, 16 दिसंबर 2013

'निर्भया' के एक साल बाद, एक सवाल

चाहे उसे निर्भया कहिये या दामिनी या चाहे जो भी नाम रख लीजिए। या फिर भंवरी देवी,  प्रिदर्शिनी मट्टू या  नैना साहनी। या ऐसे ही वो तमाम अनगिनत नाम जो देश के कोने-कोने में रोज किसी न किसी रूप में यौनिक हिंसा या विभत्सतता की शिकार होती हैं … यह एक लम्बी सूची  हो सकती है। पर सवाल अभी भी वहीँ है कि क्या आज समाज में नारी पूर्णतया सुरक्षित है ?  क्या तमाम राजनैतिक एवं प्रशासनिक व पुलिस सिस्टम के आश्वासनों, न्यायिक सक्रियता, एनजीओ और  सामाजिक संगठनों के प्रदर्शन, प्रिंट मीडिया के रँगे गए पूरे पन्ने,  न्यूज चैनल्स की  ब्रेकिंग न्यूज एवम कैंडल मार्च  जैसी कवायदें भारत देश और यहाँ आने वाली अन्य देश कि महिलाओं को यह आश्वस्त कर सकते हैं कि महिलाएँ अब इस देश में सुरक्षित हैं ? क्या वाकई 'मानसिकता' सिस्टम पर हावी है या यह हमारा दोहरा चरित्र है कि हम कहते कुछ और हैं और करते कुछ और हैं.… निर्भया की  मौत के एक साल बाद भी यह सवाल अभी भी वहीँ खड़ा है।  अभी भी निर्भया और उन  जैसी तमाम आत्माएँ हमसे यही सवाल पूछ रही हैं कि क्या हम  फिर से मानव योनि में जन्म लें या यूँ ही हमारी आत्मा भटकती रहे ? उन्हें अभी भी इंतजार है उस दिन का जब कोई लड़की घर में, सड़क पर या खेतों में  यूँ ही  रेप का शिकार नहीं होगी और कह सकेगी कि यह मेरा देश है, यहाँ मेरे लोग हैं और मैं यहाँ पर पूर्णतया सुरक्षित हूँ .....!!  

- आकांक्षा यादव 

मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

11-12-13

11-12-13  यह तारीख तो बड़ी अनूठी और रोचक है। ऐसे अनूठे दिन विरले ही आते हैं। तमाम लोग इस दिन को अपने जीवन से जोड़ने के लिए प्लान कर रहे हैं। कोई इस दिन विवाह के बंधन में बंधकर इस दिन को ता-जिंदगी याद रखना चाहता है तो कोई इस दिन अपने बच्चे को संसार में आना देखना चाहता है ....ऐसी ही तमाम अनूठी योजनाएं कइयों के मन में चल रही हैं। कोई इस दिन को रोचक बनाना चाहता है, कोई यादों में संजोना चाहता है, कोई ऐतिहासिक बनाना चाहता है। आप भी कुछ सोच रहे हैं क्या ...!!

11-12-13 तब और भी रोचक हो जायेगा, जब इस दिन समय होगा 14 :15 :16.




शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

महिलाओं से इतना डर क्यों


महिलाओं से इतना डर क्यों लगने लगा है इस देश के सम्प्रभुओं को?  फारुख अब्दुल्ला साहब अपना दुःख बयां कर रहे हैं, कि महिलाओं से इतना डर लगने लगा है कि उन्हें पीए बनाने से पहले भी सोचें ?  जस्टिस गांगुली से जुड़ा सवाल पूछे जाने पर जवाब देते हुए फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि अब लड़कियों से बात करने में भी डर लगता है, और हालत ये हो गई है कि अब हम लोग महिला पीए भी नहीं रखेंगे। क्या पता कब जेल जाना पड़ जाए। फारुख जी तो सिर्फ किसी के बहाने बयान दे रहे हैं, पर शायद यही आवाज़ राजनेताओं से लेकर संत, पत्रकार, जज, अधिकारी तक अपने मन में दबा कर बैठे हैं.…सवाल है कि आखिर क्यों ? 

लड़कियाँ/महिलाएं खुलकर विरोध करने लगीं कि कैसे उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया, कैसे उनके सीनियर्स ने  उनका फायदा उठाया तो कुछेक लोग जेल की  सलाखों के पीछे पहुँच गए और कुछ लोग कभी भी जेल जाने का इंतज़ार कर रहे हैं.…। आखिर ये सम्प्रभु लोग यह क्यों नहीं सोचते कि महिलाओं का अपना भी स्वतंत्र अस्तित्व है, सम्मान है, निजता है, आप उसके साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते। 

महिलाएं कोई गूंगी गुड़िया नहीं हैं, जिसे जहाँ चाहें फिट कर दें. उनमें भी स्पंदन होता है, चीजों का विरोध होता है, उन्हें आप लम्बे समय तक दबा कर नहीं रख सकते। आखिर, अपनी मानसिकता बदलने की  बजाय यह कहना कि हम महिलाओं के साथ काम नहीं कर सकते, उनसे डर लगता है .... कभी इसे महिलाओं के भी एंगल से सोचिए ?? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि किन विपरीत परिस्थितियों में महिलाओं ने समाज और व्यवस्था में अपना स्थान बनाया है और आज यदि उसी महिला से लोग डरने की  बात कर रहे हैं तो यह महिलाओं से नहीं बल्कि खुद से डरना है, क्योंकि शायद आपका अपने ऊपर नियंत्रण ही नहीं है. 

आखिर, सम्प्रभु लोग यह क्यों सोचते हैं कि महिलाएं उनकी पीए बनें, बॉस नहीं। कहीं न कहीं यह दोहरापन भी  इन सबकी जड़ में है. यदि लोग यह  सोचते हैं कि महिलाओं के साथ रेप होता रहे, छेड़छाड़ होती रहे और आप कैंडल जलाकर सदभावना और श्रद्धांजलि अर्पित करते रहेंगे तो इस ग़लतफ़हमी को निकाल डालिए। महिलाओं की सौम्यता को उनकी कमजोरी नहीं समझिये, नहीं तो रणचंडी बनने में कितनी देरी लगती है. फिर बड़ा से बड़ा अपने को भगवान समझने वाला संत और बड़े से बड़े लोगों की तहलका मचाकर बखिया उघेड़ने वाले भी अर्श से फर्श पर आ जाते हैं !!

- आकांक्षा यादव @ www.shabdshikhar.blogspot.com/