आपका समर्थन, हमारी शक्ति

रविवार, 25 मार्च 2012

इलाहाबाद में अक्षिता (पाखी) का जन्मदिन...

आज हमारी प्यारी बिटिया अक्षिता (पाखी) का जन्म-दिन है. अंडमान के बाद अब हम इलाहाबाद में पाखी का जन्मदिन मना रहे हैं. अब तो पाखी की बहना अपूर्वा भी उसका जन्मदिन सेलिब्रेट करने के लिए है. आजकल पाखी हर कुछ अपूर्वा के साथ शेयर करने लगी हैं. चाकलेट से लेकर खिलौनों तक. पाखी के जन्मदिन पर एक प्यारी सी कविता लिखी थी, आप भी इसका आनंद उठायें और बिटिया पाखी को जन्मदिन पर अपना स्नेहिल आशीर्वाद दें-

आँखों में भविष्य के सपने
चेहरे पर मधुर मुस्कान है
अक्षिता को देखकर लगता है
दिल में छुपाये कई अरमान है।

अक्षिता के मन में इतनी उमंगें
नन्हीं सी यह जान है
प्यारी-प्यारी ड्राइंग बनाती
देखकर सब हैरान हैं।

ज्ञान पथ पर है तत्पर
गुणों की यह खान है
भोली सी सूरत इसकी
हमें इस पर अभिमान है।

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

नव संवत्सर का स्वागत...

आज विक्रम संवत 2069 के पहले दिन से हिन्दू नव-वर्ष का आरंभ हो रहा है. हिंदू नव वर्ष या भारतीय नव वर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। इसे हिंदू नव संवत्सर या नव संवत या विक्रम संवत कहते हैं। शक्ति की देवी माँ दुर्गा की आराधना का 'नवरात्र' भी आज से ही प्रारम्भ होता है. ऐसी मान्यता है कि जगत की सृष्टि की घड़ी (समय) यही है। इस दिन भगवान ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना हुई तथा युगों में प्रथम सत्ययुग का प्रारंभ हुआ। ‘चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे अहनि। शुक्ल पक्षे समग्रेतु तदा सूर्योदये सति।।‘
अर्थात ब्रह्मा पुराण के अनुसार ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना चैत्र मास के प्रथम दिन, प्रथम सूर्योदय होने पर की। इस तथ्य की पुष्टि सुप्रसिद्ध भास्कराचार्य रचित ग्रंथ ‘सिद्धांत शिरोमणि‘ से भी होती है, जिसके श्लोक में उल्लेख है कि लंका नगर में सूर्योदय के क्षण के साथ ही, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष के प्रथम दिवस से मास, वर्ष तथा युग आरंभ हुए। अतः नव वर्ष का प्रारंभ इसी दिन से होता है, और इस समय से ही नए विक्रम संवत्सर का भी आरंभ होता है, जब सूर्य भूमध्य रेखा को पार कर उत्तरायण होते हैं। इस समय से ऋतु परिवर्तन होनी शुरू हो जाती है। वातावरण समशीतोष्ण होने लगता है। ठंडक के कारण जो जड़-चेतन सभी सुप्तावस्था में पड़े होते हैं, वे सब जाग उठते हैं, गतिमान हो जाते हैं। पत्तियों, पुष्पों को नई ऊर्जा मिलती है। समस्त पेड़-पौधे, पल्लव रंग-विरंगे फूलों के साथ खिल उठते हैं। ऋतुओं के एक पूरे चक्र को संवत्सर कहते हैं। इस वर्ष नया विक्रम संवत 2069, मार्च 23, 2012 को प्रारंभ हो रहा है।

संवत्सर, सृष्टि के प्रारंभ होने के दिवस के अतिरिक्त, अन्य पावन तिथियों, गौरवपूर्ण राष्ट्रीय, सांस्कृतिक घटनाओं के साथ भी जुड़ा है। रामचन्द्र का राज्यारोहण, धर्मराज युधिष्ठिर का जन्म, आर्य समाज की स्थापना तथा चैत्र नवरात्र का प्रारंभ आदि जयंतियां इस दिन से संलग्न हैं। इसी दिन से मां दुर्गा की उपासना, आराधना, पूजा भी प्रारंभ होती है। यह वह दिन है, जब भगवान राम ने रावण को संहार कर, जन-जन की दैहिक-दैविक-भौतिक, सभी प्रकार के तापों से मुक्त कर, आदर्श रामराज्य की स्थापना की। सम्राट विक्रमादित्य ने अपने अभूतपूर्व पराक्रम द्वारा शकों को पराजित कर, उन्हें भगाया, और इस दिन उनका गौरवशाली राज्याभिषेक किया गया।

विक्रम संवत की शुरुआत उज्जैन के प्रतापी राजा विक्रमादित्य ने की थी. उनकी न्यायप्रियता के किस्से भारतीय परिवेश का हिस्सा बन चुके हैं। विक्रमादित्य का राज्य उत्तर में तक्षशिला जिसे वर्तमान में पेशावर (पाकिस्तान) के नामसे जाना जाता हैं, से लेकर नर्मदा नदी के तट तक था। विक्रम संवत को सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित करने की खुशी में 57 ईसा पूर्व शुरू किया था।राजा विक्रमादित्य ने यह सफलता मालवा के निवासियों के साथ मिलकर गठित जनसमूह और सेना के बल पर हासिल की थी। विक्रमादित्य की इस विजय के बाद जब राज्यारोहण हुआ तब उन्होंने प्रजा के तमाम ऋणों को माफ करने का ऐलान किया तथा नए भारतीय कैलेंडर को जारी किया, जिसे विक्रम संवत नाम दिया गया।इतिहास के मुताबिक, अवन्ती (वर्तमान उज्जैन) के राजा विक्रमादित्य ने इसी तिथि से कालगणना के लिए ‘विक्रम संवत्’ का प्रारंभ किया था, जो आज भी हिंदू कालगणना के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि विक्रमसंवत्, विक्रमादित्य प्रथम के नाम पर प्रारंभ होता है जिसके राज्य में न तो कोई चोर था और न ही कोई अपराधी या भिखारी था। ज्योतिष की मानें तो प्रत्येक संवत् का एक विशेष नाम होता है। विभिन्न ग्रह इस संवत् के राजा, मंत्री और स्वामी होते हैं। इन ग्रहों का असर वर्ष भर दिखाई देता है। सिर्फ यही नहीं समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी इसी दिन को ‘आर्य समाज’ स्थापना दिवस के रूप में चुना था।

मानव इतिहास की सबसे पुरानी पर्व परम्पराओं में से एक नववर्ष है। नववर्ष के आरम्भ का स्वागत करने की मानव प्रवृत्ति उस आनन्द की अनुभूति से जुड़ी हुई है जो बारिश की पहली फुहार के स्पर्श पर, प्रथम पल्लव के जन्म पर, नव प्रभात के स्वागतार्थ पक्षी के प्रथम गान पर या फिर हिम शैल से जन्मी नन्हीं जलधारा की संगीत तरंगों से प्रस्फुटित होती है। विभिन्न विश्व संस्कृतियाँ इसे अपनी-अपनी कैलेण्डर प्रणाली के अनुसार मनाती हैं। वस्तुतः मानवीय सभ्यता के आरम्भ से ही मनुष्य ऐसे क्षणों की खोज करता रहा है, जहाँ वह सभी दुख, कष्ट व जीवन के तनाव को भूल सके। इसी के तद्नुरुप क्षितिज पर उत्सवों और त्यौहारों की बहुरंगी झांकियाँ चलती रहती हैं।

इतिहास के गर्त में झांकें तो प्राचीन बेबिलोनियन लोग अनुमानतः 4000 वर्ष पूर्व से ही नववर्ष मनाते रहे हैं, उस समय नव वर्ष का ये त्यौहार 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी। प्राचीन रोमन कैलेण्डर में मात्र 10 माह होते थे और वर्ष का शुभारम्भ 1 मार्च से होता था। बहुत समय बाद 713 ई0पू0 के करीब इसमें जनवरी तथा फरवरी माह जोड़े गये। सर्वप्रथम 153 ई0पू0 में 1 जनवरी को वर्ष का शुभारम्भ माना गया एवं 45 ई0पू0 में जब रोम के तानाशाह जूलियस सीजर द्वारा जूलियन कैलेण्डर का शुभारम्भ हुआ, तो यह सिलसिला बरकरार रहा। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला साल, यानि, ईसा पूर्व 46 ई0 को 445 दिनों का करना पड़ा था। 1 जनवरी को नववर्ष मनाने का चलन 1582 ई0 के ग्रेगेरियन कैलेण्डर के आरम्भ के बाद ही बहुतायत में हुआ। दुनिया भर में प्रचलित ग्रेगेरियन कैलेंडर को पोप ग्रेगरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था। ग्रेगरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान भी किया था। ईसाईयों का एक अन्य पंथ ईस्टर्न आर्थोडाॅक्स चर्च रोमन कैलेंडर को मानता है। इस कैलेंडर के अनुसार नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। यही वजह है कि आर्थोडाॅक्स चर्च को मानने वाले देशों रुस, जार्जिया, येरुशलम और सर्बिया में नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है।

आज विभिन्न विश्व संस्कृतियाँ नव वर्ष अपनी-अपनी कैलेण्डर प्रणाली के अनुसार मनाती हैं। हिब्रू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे। इस सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है। यह दिन ग्रेगेरियन कैलेण्डर के मुताबिक 5 सितम्बर से 5 अक्टूबर के बीच आता है। इसी तरह इस्लाम के कैलेंडर को हिजरी साल कहते हैं। इसका नव वर्ष मोहर्रम माह के पहले दिन होता है। इस्लामी कैलेण्डर एक पूर्णतया चन्द्र आधारित कैलेंडर है, जिसके कारण इसके बारह मासों का चक्र 33 वर्षों में सौर कैलेण्डर को एक बार घूम लेता है। इसके कारण नर्व वर्ष प्रचलित ग्रेगेरियन कैलेण्डर में अलग-अलग महीनों में पड़़ता है। चीन का भी कैलेण्डर चन्द्र गणना पर आधारित है। चीनी कैलेण्डर के अनुसार प्रथम मास का प्रथम चन्द्र दिवस नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह प्रायः 21 जनवरी से 21 फरवरी के बीच पड़ता है।

भारत के भी विभिन्न हिस्सों में नव वर्ष अलग-अलग तिथियों को मनाया जाता है। भारत में नव वर्ष का शुभारम्भ वर्षा का संदेशा देते मेघ, सूर्य और चंद्र की चाल, पौराणिक गाथाओं और इन सबसे ऊपर खेतों में लहलहाती फसलों के पकने के आधार पर किया जाता है। इसे बदलते मौसमों का रंगमंच कहें या परम्पराओं का इन्द्रधनुष या फिर भाषाओं और परिधानों की रंग-बिरंगी माला, भारतीय संस्कृति ने दुनिया भर की विविधताओं को संजो रखा है। असम में नववर्ष बीहू के रुप में मनाया जाता है, केरल में पूरम विशु के रुप में, तमिलनाडु में पुत्थंाडु के रुप में, आन्ध्र प्रदेश में उगादी के रुप में, महाराष्ट्र में गुड़ीपड़वा के रुप में तो बांग्ला नववर्ष का शुभारंभ वैशाख की प्रथम तिथि से होता है।

भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ लगभग सभी जगह नववर्ष मार्च या अप्रैल माह अर्थात चैत्र या बैसाख के महीनों में मनाये जाते हैं। पंजाब में नव वर्ष बैशाखी नाम से 13 अप्रैल को मनाई जाती है। सिख नानकशाही कैलेण्डर के अनुसार 14 मार्च होला मोहल्ला नया साल होता है। इसी तिथि के आसपास बंगाली तथा तमिल नव वर्ष भी आता है। तेलगू नव वर्ष मार्च-अप्रैल के बीच आता है। आंध्र प्रदेश में इसे उगादी (युगादि=युग$आदि का अपभ्रंश) के रूप में मनाते हैं। यह चैत्र महीने का पहला दिन होता है। तमिल नव वर्ष विशु 13 या 14 अप्रैल को तमिलनाडु और केरल में मनाया जाता है। तमिलनाडु में पोंगल 15 जनवरी को नव वर्ष के रुप में आधिकारिक तौर पर भी मनाया जाता है। कश्मीरी कैलेण्डर नवरेह 19 मार्च को आरम्भ होता है। महाराष्ट्र में गुडी पड़वा के रुप में मार्च-अप्रैल के महीने में मनाया जाता है, कन्नड़ नव वर्ष उगाडी कर्नाटक के लोग चैत्र माह के पहले दिन को मनाते हैं, सिंधी उत्सव चेटी चंड, उगाड़ी और गुडी पड़वा एक ही दिन मनाया जाता है। मदुरै में चित्रैय महीने में चित्रैय तिरुविजा नव वर्ष के रुप में मनाया जाता है। मारवाड़ी और गुजराती नव वर्ष दीपावली के दिन होता है, जो अक्टूबर या नवंबर में आती है। बंगाली नव वर्ष पोहेला बैसाखी 14 या 15 अप्रैल को आता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में इसी दिन नव वर्ष होता है। वस्तुतः भारत वर्ष में वर्षा ऋतु की समाप्ति पर जब मेघमालाओं की विदाई होती है और तालाब व नदियाँ जल से लबालब भर उठते हैं तब ग्रामीणों और किसानों में उम्मीद और उल्लास तरंगित हो उठता है। फिर सारा देश उत्सवों की फुलवारी पर नववर्ष की बाट देखता है। इसके अलावा भारत में विक्रम संवत, शक संवत, बौद्ध और जैन संवत, तेलगु संवत भी प्रचलित हैं, इनमें हर एक का अपना नया साल होता है। देश में सर्वाधिक प्रचलित विक्रम और शक संवत हैं।
आप सभी को भारतीय नववर्ष विक्रमी सम्वत 2069 और चैत्री नवरात्रारंभ पर हार्दिक शुभकामनायें. आप सभी के लिए यह नववर्ष अत्यन्त सुखद हो, शुभ हो, मंगलकारी व कल्याणकारी हो, नित नूतन उँचाइयों की ओर ले जाने वाला हो !!

-आकांक्षा यादव : शब्द-शिखर





गुरुवार, 8 मार्च 2012

नारी होने पर गर्व करें..

महिला-दिवस सुनकर बड़ा अजीब लगता है. क्या हर दिन सिर्फ पुरुषों का है, महिलाओं का नहीं ? पर हर दिन कुछ कहता है, सो इस महिला दिवस के मनाने की भी अपनी कहानी है. कभी महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई से आरंभ हुआ यह दिवस बहुत दूर तक चला आया है, पर इक सवाल सदैव उठता है कि क्या महिलाएं आज हर क्षेत्र में बखूबी निर्णय ले रही हैं. मात्र कुर्सियों पर नारी को बिठाने से काम नहीं चलने वाला, उन्हें शक्ति व अधिकार चाहिए ताकि वे स्व-विवेक से निर्णय ले सकें. आज नारी राजनीति, प्रशासन, समाज, संगीत, खेल-कूद, फिल्म, साहित्य, शिक्षा, विज्ञान, अन्तरिक्ष सभी क्षेत्रों में श्रेष्ठ प्रदर्शन कर रही है, यहाँ तक कि आज महिला आर्मी, एयर फोर्स, पुलिस, आईटी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा जैसे क्षेत्र में नित नई नजीर स्थापित कर रही हैं। यही नहीं शमशान में जाकर आग देने से लेकर पुरोहिती जैसे क्षेत्रों में भी महिलाएं आगे आ रही हैं. रुढियों को धता बताकर महिलाएं हर क्षेत्र में परचम फैलाना चाहती हैं।



वर्तमान दौर में नारी का चेहरा बदला है। नारी पूज्या नहीं समानता के स्तर पर व्यवहार चाहती है। सदियों से समाज ने नारी को पूज्या बनाकर उसकी देह को आभूषणों से लाद कर एवं आदर्शों की परंपरागत घुट्टी पिलाकर उसके दिमाग को कुंद करने का कार्य किया, पर नारी आज कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, पी0टी0 उषा, किरण बेदी, कंचन चैधरी भट्टाचार्य, इंदिरा नूई, शिखा शर्मा, किरण मजूमदार शाॅ, वंदना शिवा, चंदा कोचर, ऐश्वर्या राय, सुष्मिता सेन, फ्लाइंग आॅफिसर सुषमा मुखोपाध्याय, कैप्टन दुर्गा बैनर्जी, ले0 जनरल पुनीता अरोड़ा, सायना नेहवाल, संतोष यादव, निरुपमा राव, कृष्णा पूनिया, कुंजारानी देवी, इरोम शर्मिला, मेघा पाटेकर, अरुणा राय, जैसी शक्ति बनकर समाज को नई राह दिखा रही है और वैश्विक स्तर पर नाम रोशन कर रही हैं। नारी की शिक्षा-दीक्षा और व्यक्तित्व विकास के क्षितिज दिनों-ब-दिन खुलते जा रहे हैं, जिससे तमाम नए-नए क्षेत्रों का विस्तार हो रहा हैं। कभी अरस्तू ने कहा कि -“स्त्रियाँ कुछ निश्चित गुणों के अभाव के कारण स्त्रियाँ हैं” तो संत थाॅमस ने स्त्रियों को “अपूर्ण पुरूष” की संज्ञा दी थी, पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ऐसे तमाम सतही सिद्वान्तों का कोई अर्थ नहीं रह गया एवं नारी अपनी जीवटता के दम पर स्वयं को विशुद्ध चित्त (Being-for- itself : स्वयं में सत् ) के रूप में देख रही है। आज यदि नारी आगे बढ़ना चाहती है तो उसके स्वाभाविक अधिकारों का दमन क्यों ?



पर इन सबके बावजूद आज भी समाज में बेटी के पैदा होने पर नाक-भौंह सिकोड़ी जाती है, कुछ ही माता-पिता अब बेटे-बेटियों में कोई फर्क नहीं समझते हैं...आखिर क्यों ? क्या सिर्फ उसे यह अहसास करने के लिए कि वह नारी है. वही नारी जिसे अबला से लेकर ताड़ना का अधिकारी तक बताया गया है. सीता के सतीत्व को चुनौती दी गई, द्रौपदी की इज्जत को सरेआम तार-तार किया गया तो आधुनिक समाज में ऐसी घटनाएँ रोज घटित होती हैं. तो क्या बेटी के रूप में जन्म लेना ही अपराध है. मुझे लगता है कि जब तक समाज इस दोहरे चरित्र से ऊपर नहीं उठेगा, तब तक नारी की स्वतंत्रता अधूरी है. सही मायने में महिला दिवस की सार्थकता तभी पूरी होगी जब महिलाओं को शारीरिक, मानसिक, वैचारिक रूप से संपूर्ण आज़ादी मिलेगी, जहाँ उन्हें कोई प्रताड़ित नहीं करेगा, जहाँ कन्या भ्रूण हत्या नहीं की जाएगी, जहाँ बलात्कार नहीं किया जाएगा, जहाँ दहेज के लोभ में नारी को सरेआम जिन्दा नहीं जलाया जाएगा, जहाँ उसे बेचा नहीं जाएगा। समाज के हर महत्वपूर्ण फैसलों में उनके नज़रिए को समझा जाएगा और क्रियान्वित भी किया जायेगा. जरुरत समाज में वह जज्बा पैदा करने का है जहाँ सिर उठा कर हर महिला अपने महिला होने पर गर्व करे, न कि पश्चाताप कि काश मैं लड़का के रूप में पैदा होती !!

-- आकांक्षा यादव : शब्द-शिखर